रात की बाहें
बड़ी अजीब हुआ करती हैं।
मन में अगर शूल उगे हों
तो काँटों की तरह चुभ जाती हैं
और जो,
कोमल भावनाओं से आप्लावित हो मन
तो नर्म, मुलायम, मखमली हो जाती हैं।
रात.....
एक रहस्यमयी अवधारणा
तिस पर बारिश, सुनसान सड़क
और चमकती हुई स्ट्रीट लाइट्स !
इरादा रोज़ करता हूँ
कि प्यार, प्यार और सिर्फ प्यार
लिखूँ
नर्म-नाज़ुक रात की बाहों की तरह।
लेकिन जाने कैसे और कहाँ से
शूल उभर आते हैं !
रात की बाहों में सोता हूँ
मगर नींद नहीं आती।
फिर हर दूसरे या तीसरे रोज़
देर रात, ख़ुद से दूर भागने के
लिए
रातों का पीछा करने लगता हूँ।
कभी लपक उठते, गुर्राते श्वान
कभी इस दिशा से उस दिशा की ओर
चीखकर जाती हुई टिटहरी
तो कभी नीम के दरख़्त के नीचे बैठा
चिलम फूँकता, जटाजूट बालों वाला वो
अघोरी
जो उम्र से पहले ही बुढ़ा गया है।
इन सबसे बचकर
मैं तुम्हारी तस्वीर बनाता हूँ
मगर ऐन वक़्त पर
वो तस्वीर बनते-बनते बिखर जाती है।
ठीक वैसे ही,
जैसे कि कोई काँच की वस्तु
हाथ से छूटकर कठोर धरातल से टकराए
और चूर-चूर हो जाये।
नीरव रातों में
अक्सर एक ही जगह रुकता हूँ
वहाँ फिर-फिर वही गीत सुनाई देता है
“चल कहीं दूर निकल जाएँ…..
..... अच्छा है संभल जाएँ !”
और मैं ख़ुद से सवाल कर बैठता हूँ,
कि मैं कहीं दूर जाना चाहता हूँ
या कि संभल जाना चाहता हूँ ?
छटपटाते हुये मैं उस जगह लौटता हूँ
जहाँ वो अघोरी बैठा था
नज़रें दौड़ाता हूँ, वो नहीं दिखता
कि तभी ठीक मेरे सिर के ऊपर
हँसने की आवाज़ आती है
आँख उठाकर देखता हूँ
तो मुझसे लगभग एक फ़ीट ऊपर
हवा में चौकड़ी लगाए
वही अघोरी हँसता हुआ दिखाई देता है।
मगर वो मुझ पर नहीं हँस रहा...
मैं भी बिलकुल सहज भाव से
उसे छूने के लिए पंजे उचकाता हूँ
किन्तु छूने से ठीक क्षणभर पहले
वह गायब हो जाता है।
अब सिर्फ़ घना नीम का पेड़
चौकोर जूट का आसन
और अघोरी की बुझी हुई चिलम है वहाँ
मैं बुझी हुई चिलम को छूता हूँ
और लगता है
जैसे किसी अंगारे को पकड़ लिया !
छटपटा कर उँगलियाँ मुंह में ले लेता हूँ
कि तभी ....
ख़याल बनकर तुम चली आती हो
कसकर मुझे अपने गले से लगाती हो
और मैं....
रेज़ा-रेज़ा, रेशा-रेशा वाष्पीकृत होता जाता हूँ।
फिर मैं अपनी आँखों से देखता हूँ
स्वयं को तुम में विलीन होते हुये !
और तुम ...
हौले से मेरे कान में कहती हो-
“देव मेरे,
जीवन एक तेज़ रफ्तार सड़क है
और प्यार,
उस पर बिछी ज़ेब्रा-क्रॉसिंग !
...... झिझको नहीं, आराम से पार
करो !!”
किसी ख़ुमारी में खोया हुआ मैं
फिर घर की ओर चल देता हूँ
नींद को आँखों में लिए
फिर से एक और रात के इंतज़ार में
ऐसे ही बेसबब निकल पड़ने के लिए।
हाँ तुम ....
....सिर्फ़ तुम !
और मैं .....
तुम्हारा
देव
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