देव मेरे,
वो ख़त याद है तुम्हें
जिसमें तुमने लिखा था
“सपनों की कोई एज-लिमिट नहीं होती
प्रेमी कभी ओवर-एज नहीं हुआ करते।”
अह्हा....
कितने मासूम, कितने निर्दोष भाव !
दुनिया से बेख़बर
थोड़ा संजीदा, थोड़ा बेफ़िकरा
वो...
वो देव ही है मेरा प्रेमी !
कहीं खो गया है वो देव
उसीको खोजा करती हूँ मैं !
तोते की तरह चहकता
बच्चे की तरह मचलता
ठुनुक-ठुनुक करता .... प्रेमिल देव !
ये कहाँ उलझे रहने लगे हो आजकल ?
चेहरे पर तनाव, आँखों में उदासी
ऐसे तो नहीं थे तुम कभी !
तुम्हें पता है ना…
वैसे लोग मुझे ज़रा नहीं सुहाते।
जो,
स्टेटस देखकर ये अनुमान लगाया करते हैं
कि तुम कितने दुखी हो
या प्रोफ़ाइल फ़ोटो के न दिखने पर
तुम्हें मरा हुआ मान बैठते हैं
ऐसे लोग,
दरअसल इंसान कम और feeded programme ज़्यादा हुआ करते हैं।
ऐसों से प्रभावित ना होओ
और ना ही ऐसे बन जाओ।
तुम्हारी बगिया का वो तोता
जो तुम्हारी गैरमौज़ूदगी में
मुझसे बतियाता है
और तुम्हारे आने पर 'चुप्पा'
हो जाता है
जानते हो ....
कल उसने मुझसे क्या कहा ?
कहने लगा
....
“मेरा मन,
अब देव की बगिया में नहीं रमता
इतनी सुंदर बगिया में भी
हर सूं एक उदासी तारी रहती है।”
मैं हतप्रभ सी उसे देखने लगी
तो दूर ठूंठ बन चुके
एक पेड़ की ओर पंख फैलाकर बोला
“वो दूर सूखा हुआ पेड़ देख रही हो ?
मैं वहाँ जाना चाहता हूँ
ये देखने के लिए
कि सूखे हुये पेड़ पर भी
क्या इतनी ही उदासी छाई रहती है ?”
मैं लौटने लगी
तो अपना एक पंख निकालकर
मुझे देते हुये बोला
“ये रख लो
तुम अगली बार आओ
तो शायद मैं न मिलूँ।”
किंकर्तव्यविमूढ़ सी ....
पंख को उँगलियों में दबाये
मैं चली आई।
देखो तो
कितना प्यारा है ये सुआ-पंख
कितना अद्भुत कॉम्बिनेशन है इसमें रंगों का !
कभी सोचे हो
कि तुम्हारी बगिया कितनी अनमोल है ?
.... शायद नहीं !
क्योंकि तुम, अब वो देव नहीं रहे
!
क्यों नहीं करते
वो ही प्यार भरी बातें ?
क्यों नहीं लिखते तुम
वो दिल वाली चिट्ठियाँ फिर से ?
क्या तुम्हारे भीतर का प्रेम
प्रौढ़ हो गया
या कि तुम्हें
अल्हड़ कहे जाने से परहेज़ हो गया ?
मिट्ठू मेरे,
कल रात फिर
मैंने वही सपना देखा
घनी अमराई और सफ़ेद कोठी वाला !
उस सपने में हमेशा की तरह
तुम और मैं भी थे।
दोनों की उम्र सत्रह से उन्नीस के बीच की।
मैंने नीला परिधान ओढ़ रक्खा था
और तुम...
झक्क सफ़ेद कपड़ों में।
वातावरण में एक अजीब सी सम्मोहक धुन …
लेकिन इस बार सपने में
कहीं से एक आवाज़ आ रही थी-
“बहुत कुछ अधूरा छूट गया था
पिछले जनम में !
इसी के वास्ते फिर से मिले हो तुम दोनों
इस बार वही गलतियाँ मत दोहराना !”
आवाज़ को खोजते हुये
कोठी के बाहर एक पूरा गोल चक्कर लगाकर
जैसे ही
हम एक दूसरे के सामने पहुँचे
और आँखें मिलीं
वैसे ही सपना टूट गया।
सुनो मेरे प्यारे,
सुआ के पंख जैसे बन जाओ
और धीरे से आकर
मेरी किताब के उस पन्ने पर बैठ जाओ
जहाँ मैं हर बार पढ़ना बंद करूँ।
ताकि अगली बार
जब भी किताब खोलूँ
तो वहीं से शुरू करूँ
जहाँ पिछली बार
तुम्हारे साथ कुछ अधूरा छोड़ आई थी
समझे हो ?
तुम्हारी
मैं !
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