Sunday, 11 March 2018

उस दिन के रंग, कसक की महक से सराबोर थे



सदियों से चल रहा पीढ़ियों का अंतरण
दुनिया कहती है अद्भुत रूपांतरण,
आत्मा की जिस्म पर कैसी ये निर्भरता
खोज रहा हूँ मैं अपनी सार्थकता ।।


ओह, ओह, ओह.....
अक्सर ये त्यौहार
मेरा हाथ पकड़कर
मुझे यादों के मुहाने पर लाकर
अकेला छोड़ देते हैं।
और फिर...
वर्तमान मुझे हौले से थपकी देकर
अतीत में धकेल देता है।
अतीत...
जहाँ से वापस आने को मन नहीं करता !


अक्सर समय की हवा
उड़ा कर दूर लिये जाती है
इतनी दूर...
कि फिर यादें ही मिलन का एकमात्र ज़रिया रह जाती हैं।


एक लड़की थी,
जो होली के रंगों से चिढ़ती थी
एक लड़का था,
जो होली के रंगों से खेलने की तैयारी
कई हफ़्तों पहले से करता था।


स्कूलों वाले दिन थे
मीठी कसक की शुरुआत हो चुकी थी।
उम्र का तकाज़ा था
कई फ़ौरी वजहें बन जाती थीं
किसी को पसन्द या नापसंद करने की।


फिर एक दिन वही हुआ
जिसको संयोग कहते हैं।
धुलेंडी के दिन, सीढ़ियों पर
दोनों आमने-सामने आ गये।
लड़के ने जैसे ही रंग लगाया
लड़की ज़ोर से चीखी।
लड़का घबरा कर भागा
और सीढ़ियों से फिसल कर बेहोश हो गया।


अपराध-बोध की पोटली लादे
पूरे दिन
उस लड़की को एक ही दृश्य दिखता रहा....
बेहोशी की हालत में काँधे पर झूलता लड़का
सिर से रिसता खून
और अस्पताल भागते लोग !


सुना फिर किसी से
कि शहर के अस्पताल में जाकर
उस लड़के की जान बची।
मगर वो फिर लौट कर नहीं आया।


दिन, हफ़्ते और साल गुज़रे
लड़की का ब्याह भी तय हो गया
और उसके विवाह के ठीक पहले जो होली आयी
उसी पर वो लड़का फिर से लौट कर आया।


अंतर आ गया था अब,
वही अंतर...
जो एक स्कूली किशोर और समझदार युवा में होता है।


लड़की को ज्यों ही पता चला
तश्तरी में टेसू के फूल लेकर
लड़के से मिलने भागी।
फिर से दोनों की मुलाक़ात
उन्हीं सीढ़ियों पर हुई
तभी लड़की को एहसास हुआ
कि अपनी चुनरी तो वो घर पर ही छोड़ आयी है।
लेकिन तब भी
वो ठिठकी नहीं।
अश्रुपूरित विश्वास के साथ
लड़के की आँखों में झाँकती हुई बोली
"कितनी राह तकी मैंने ...
पहले लौट आते तो क्या जाता तुम्हारा ?"


लड़का सुन्न सा देखता रहा
फिर मुस्कुराने का यत्न करने लगा
लड़की ने टेसू की तश्तरी रखी
और जाने लगी।
लड़के ने आवाज़ देकर उसको रोका
उसका हाथ थामा
और एक फूल उसकी हथेली पर हौले से रखकर
उसकी मुट्ठी बन्द कर दी।
लड़की अपने घर चली गयी
और उस इकलौते टेसू के फूल को सिरहाने रख दिया।


देर रात होली जली
सुबह सबने उसके अंगारों पर
गेहूँ की बालियाँ सेकीं।
सिरहाने रखा टेसू भी
रात भर आँसुओं से भीगा,
और सुबह गल कर पंखुड़ियों में बदल गया।
वो लड़का....
रात की गाड़ी से ही वापस लौट गया।
दूर कहीं कोई गीत गूँजा
"आज बिरज में होरी रे रसिया"
उस दिन के रंग
कसक की महक से सराबोर थे।


सुनो
भीगकर भारी हो चुके मन से
होली की शुभकामनाएं।


तुम्हारा

देव

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