Thursday 4 September 2014

पहिया कुछ जल्दी घूम गया ना ?



लोगों की निगाहें बदल गयी हैं इन दिनों।
भरम करने लगे हैं मुझ पर !
कोई कहता है कि मैं उसे घूर रहा हूँ ,
तो किसी को लगता है कि एकटक देखे जा रहा हूँ ।
पर सच सिर्फ़ ये है,
कि तुम्हें और और जी रहा हूँ अब मैं !!!
अनजाने चेहरों में ...
अजनबी आवाज़ों में ...
तलाशने लगता हूँ बरबस ही तुमको ।
भेद मिटने लगे हैं ।
खुद से वादे करना भी छोड़ दिया अब तो !
भीतर ही भीतर एक ज्वार उठाओ ,
और फिर फिर किसी सेफ़्टी–वॉल्व के लिए छटपटाओ ।
... ये नहीं होता अब मुझसे।

कल रात सूफ़ी ने मुझसे पूछा
“ देव ,
एक बात बताओ ?
ये ख़त सिर्फ़ कल्पना है ।
या तुम्हारी ज़िंदगी भी जुड़ी है इन ख़तों से ! ”
उसकी बात सुनकर हड़बड़ा गया मैं ।
जैसे फिसलपट्टी पर फिसलते हुये बीच में ही किसी ने रोक दिया ।
“ कल्पना और हक़ीक़त दोनों। ”
मैं हौले से बुदबुदाया ।
फिर एक लंबा मौन पसर गया हम दोनों के बीच ।
पर ये सच नहीं है सखी ।
कल्पना कहीं भी नहीं है ॥
या तो मेरे ख़तों में सिर्फ़ तुम हो ,
या फिर ख़त जैसा कुछ भी नहीं !

जानती हो ...
कभी- कभी मन करता है ,
कि लिफाफे पर तुम्हारा पता लिख कर उसके भीतर एक कोरा कागज़ रख दूँ ।
भरोसा है कि ज्यूँ ही तुम उसे छूओगी मज़मून खुद-ब-खुद उभर आएगा ।
खाली कहाँ रहता कुछ भी ...
रिश्ते निर्वात नहीं होते ।
देखो न,
हम सब अपना-अपना पहिया थामे हुये एक खेल खेल रहे हैं ....
“किसी से दूर जाने का
किसी के पास आने का”
पूरा ज़ोर लगा कर धकियाते हैं, पर पहिया टस से मस नहीं होता ।
और फिर अचानक ,
पहिया Unlock होकर अपनी रफ़्तार में लपेट कर हमें गोल-गोल घुमा देता है ।
यकायक हम जहाँ थे, वहाँ से कहीं दूर पहुँच जाते हैं ।
कभी पुराने को याद करते हैं ,
तो कभी नए के साथ तालमेल बैठाते हैं ।
अरे हाँ ,
बैठाने से याद आया ।
तुमने गणपती बिठाये या नहीं ?
इस बार 365 दिनों वाला पहिया कुछ जल्दी घूम गया ना ?

तुम्हारा

देव









2 comments:

  1. Wow behad behad khoobsurat Rhishikesh
    Har baar kuch aisa likh dete ho....ki bas sunn rah jaati hu....shabd chote pad jaate hai....waise bhi bhaavnao ko kaha shabdon mein bayaan kiya jaa sakta hai....behad umda lekhan Hats off my dear friend :-)

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  2. सच कहा देव ....कल्पना कहीं भी नहीं है ! जिन्दगी के जीवंत पलों से तुम ने खतों का जो सिलसिला शुरु किया ....सब आप को अपने आस पास ही महसूस करते हैं ।हाँ सच ...भावनाओं को इतने प्यार से छू लेते हो कि अपने ही लगते हो ...जैसे मेरी ही मैं मुझ से बात कर रही हो ।हर बार तुम्हारी बैचेनी से रूबरू होती हूँ मगर हर बार तुम बात अधूरी क्यों छोड़ देते हो ....क्या सही कहा आज तुमने समय का चक्र ....पास आते ही हमारे दूर जाने का सिलसिला भी तो शुरू हो गया ....फिर से मिलने के लिए !!!...है न देव ??

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