देव
मेरे,
वे
शामें हम कभी नहीं भूल पाते
जो बहुत
पीड़ा या ख़ुशी में गुज़री हों।
आज
की शाम में ऐसा कुछ नहीं था
तब
भी, वो मेरे स्मृति-पटल पर थिर गई है।
सीली
सी शाम, बारिश का अंदेशा
थमता-चलता
ट्रैफिक
और
दो बूढ़े जिस्म !
शायद
दो दोस्त, दो भाई, दो पड़ोसी
....
या सिर्फ वॉकिंग-पार्टनर्स !
लगभग
हमउम्र से।
एक
जिस्म थोड़ा ज़्यादा झुका हुआ
और
दूसरा बनिस्बत कम !
एक
ने देसी परिधान पहन रखा
तो
दूसरा लोअर-टीशर्ट में !
एक N-95 मास्क पहने
तो
दूसरा, अपनी तर्जनी से ठोड़ी सहलाता हुआ !
ऐसा
लगा,
कि
जीती-जागती दास्तान है कोई
जो
रफ़्ता-रफ़्ता हमसे दूर होती जा रही है।
और
हम...
आम
दिनों की आम घटना की तरह
देखकर
भी कुछ नहीं देख पा रहे।
जलती
हुई स्ट्रीट-लाइट्स
वाहनों
की जगमगाती हेड-लाइट्स
और
भीड़ भरी नई सड़कों पर घूमते
थके
हुए पुराने जिस्म।
कभी
तुमने सोचा
कि
जब हम इस उम्र में आएँगे
तब
कैसे होंगे !
जानती
हूँ
तुम
सोचते हो, पर बताते नहीं
और
एक मैं हूँ...
जो
बता तो दिया करती हूँ
लेक़िन
ज़्यादा सोचती नहीं।
वैसे,
सबसे
ग़हरा निशान उम्र का ही होता है
जो
सिर्फ झुर्रियाँ नहीं देता
झुका
भी देता है
और
ठहरा भी देता है।
मानती
हूँ
कि
प्यास का बना रहना
प्यास
के मिट जाने से कहीं अधिक मोहक है
मगर...
प्यास
इतनी भी प्यासी न रह जाये
कि
वो, अपनी तासीर ही खो बैठे !
इसीलिए
मैं अक़्सर
तुम्हारे
घर के क़रीब आकर भी लौट जाती हूँ !
इसीलिए
कभी-कभी
मैं
तुमसे मिलने चली आती हूँ !
जानती
हूँ
कि
ये उम्र, जो गुज़र रही है
कल
किसी न किसी रूप में
एक
मलाल छोड़ जाएगी..
लेक़िन
ये ट्रैजडि तो हमेशा
हम
सब के साथ रहेगी !
इसलिए,
छटपटाया
मत करो।
रिश्तों
को सहेजने के लिए
ज़्यादा
बेक़ल भी न हुआ करो।
तितली
का रंग, छोटा सा पंख
या
प्रेयस का अंक...
सबकी
अपनी एक उम्र होती है।
समझे
हो !
अच्छा
सुनो,
ये
तस्वीर मैंने आज ही क्लिक की है
तुम्हारे
घर के पीछे वाली मैन-रोड पर।
कल
ठीक उसी समय फिर आऊँगी
मगर
तुमसे मिलने नहीं,
इन
दोनों वॉकिंग-पार्टनर्स को देखने।
मन
करे तो तुम भी चले आना
शाम
छह और साढ़े छह के बीच !
और
हाँ,
तुमने
आज किसी को
सीनियर
सिटीज़न्स डे की शुभकामनाएं दी या नहीं !
तुम्हारी
मैं
!
उम्र की ढलती शाम ...
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना👍