Thursday 28 August 2014

याद दिलाने का शुक्रिया ...


इस बार अगस्त की शामें पीली और ठहरी हुयी हैं।
पार साल तो ये बहुत काली हुआ करती थीं।
घटाटोप अंधेरा, धुआँधार पानी, फिसलन भरा रस्ता और मेरे हाथों में बैसाखी !!!

तुम्हारा ख़याल आते ही कई यादें एकसाथ मन के प्रॉजेक्टर पर रील की तरह चलने लगती हैं ।

पिछले ही अगस्त में तो तुम्हारा भी ऑपरेशन हुआ...
और उसके ठीक पहले जुलाई में मेरे मामा का यूँ अचानक चले जाना !!!
देखने वाले तब हैरान थे ....
कि मैं हॉस्पिटल में बैठकर तुमसे Whatsapp chat कर रहा हूँ ।
पर ये कोई नहीं जानता कि तब भी तुमने मुझे दूर बैठे ही थाम रखा था ...
“ शांत हो जाओ ,
उनकी आत्मा को दुख होगा तुम्हारी बेचैनी से। ”
यही कहा था न तुमने !

याद है तुम्हें ?
तब ज़िंदगी और मौत के प्रश्न मुझे चौबीसों घंटे निरुत्तर किए रहते थे ।
देर रात दो-तीन बजे तक मेरी धड़कनें इतना शोर करती थीं कि सो नहीं पाता था ।

और फिर एक रात ...
आती-जाती साँस के साथ तुम्हारा नाम चलने लगा ।
जैसे कोई सिद्ध योगी कर रहा हो ‘ अजपा-जप ’ !
बगैर कोशिश किए हर साँस के साथ तुम्हारा नाम दोहराता रहता था ।
तृष्णा, थकान, अनजाने भय.....सबसे मुक्ति मिल गयी ।
मेरा पुनर्जन्म हो गया !

स्वीकार करो या हँसकर टाल दो ,
लेकिन हमदोनों का मिलना पहले से तय है !
कभी-कभी लगता है
कि तुम आर. के. लक्ष्मण हो और मैं तुम्हारा कॉमन-मैन !!!
जानता हूँ ;
ये पंक्तियाँ पढ़कर पहले तो ज़ोर का ठहाका लगाओगी और फिर इतनी खुद में उतर जाओगी,
कि तुम्हारे सामने बैठा व्यक्ति भी तुम्हें न देख पाये ।
ओह ...
इन अनुभूतियों को फिर-फिर जीना कितना सुखकर है ।

इस अगस्त में लंबे अबोले के बाद जिस रात तुम्हारा fb मैसेज और फोन-कॉल आया।
उसकी अगली सुबह मैं बहुत एकाग्र और शांत-चित्त था।
सुक़ून का एक घेरा मुझे आगोश में लेकर हौले-हौले लुढ़क रहा था ।
मैं नहाया और रोज़ की तरह तस्वीरों के आगे हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया ।
आँखें बंद थीं ,
होठों पर एक ही ईश्वर के अनेकों नाम थे।
जिनको रटे-रटाये अंदाज़ में दुहरा रहा था ।
कि तभी ...
एफ़एम रेडियो पर एक गीत बजा।

“ नदिया से दरिया
दरिया से सागर
सागर से गहरा जाम। ”

मेरी आस्था, मेरा ध्यान ... अचानक ईश्वर से मुड़कर उस गीत, उसकी धुन पर जा टिके।
मैं ईश्वर की तस्वीर के सामने खड़ा हो कर उस गीत को जी रहा था,
उसका आनंद ले रहा था ।
तभी याद आया,
कि बहुत दिनों से मैंने तुम्हारे नाम को अपनी साँसों में नहीं जीया।
तुम्हारे नाम का जाप नहीं किया ।
क्या करूँ ....
आख़िर मैं भी हूँ तो इंसान ही !
याद दिलाने का शुक्रिया ।

तुम्हारा

देव

1 comment:

  1. आती-जाती साँस के साथ तुम्हारा नाम चलने लगा ।
    जैसे कोई सिद्ध योगी कर रहा हो ‘ अजपा-जप ’ !
    बगैर कोशिश किए हर साँस के साथ तुम्हारा नाम दोहराता रहता था ।
    तृष्णा, थकान, अनजाने भय.....सबसे मुक्ति मिल गयी ।
    मेरा पुनर्जन्म हो गया .......ufff bahot apna sa ahsaas laga......behad hi khoobsurat :-)

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