Wednesday 17 June 2020

ये कैसी आदतें लगा लीं तुमने






"तूने ये हरसिंगार हिलाकर बुरा किया,
पाँवों की सब ज़मीन को फूलों से ढँक दिया।"
मैंने नहीं,
तुम्हारे अपने कवि ने कही है ये बात
तुम्हारा पहला प्यार... दुष्यंत कुमार !

लेकिन ये तो बताओ
लिखा हुआ सच, जीये हुए सच से
इतना अलग क्यों हुआ करता है ?

झूठे हो तुम देव !!!
दो चेहरे हैं तुम्हारे।
मैंने देखा तुम्हारे घर,
हरसिंगार को पैरों तले रौंदे जाते हुए !
ज़्यादा दुःख इसलिए है
कि वो फूल पायदान पर बिख़रे पड़े थे।
हरी घास का सा आभास देता..
प्लास्टिक का नकली पायदान !
जूट और सूत अब,
तुम्हारी दुनिया से भी लुप्त हो रहे हैं देव !
और तुम....
एकाकी कहीं के,
रिक्तता के पर्याय;
सिर्फ़ मुझे ख़ुश करने में लगे रहते हो।

कितनी बार कहा
कि मैं कोई नहीं !
मेरी कोई परछाई भी नहीं !
क्योंकि परछाई तो उसकी होती है ना
जो कभी...
ख़ैर छोड़ो,
तुम नहीं समझोगे !

और ये कैसी आदतें लगा लीं तुमने ?
जिन्हें कहते हुए भी,
मुँह कसैला हो जाता है।
मरना ही है तो चलते-भागते मरो
बिस्तर पर पड़े पड़े मौत का इंतज़ार मत करना !

"I will arise and go now, and go to Innisfree,

And a small cabin build there, of clay and wattles made;

Nine bean-rows will I have there, a hive for the honey-bee,

And live alone in the bee-loud glade."
यीट्स को पढ़ना...
मुझे और समझ पाओगे ..!

कभी-कभी कुछ भी अच्छा नहीं लगता देव।
मन करता है
कि चली जाऊँ.... यहाँ से दूर !!
ना, ना तुम्हारी तरह नहीं भागना चाहती मैं।
मैं तो सच्चा एकांत चाहती हूँ
प्रकृति के पास, ख़ुद के क़रीब।

जानते हो देव,
हर घर की सबसे बुरी बात क्या है ?
कि उसमें एक दरवाज़ा होता है।
और उससे भी बुरा ये है
कि उस दरवाज़े में
भीतर भी एक कुंडी होती है।
और तुम जैसे प्रेमी....
बाहर की दुनिया से कटकर
कुंडी लगाकर भीतर बैठ जाते हैं।
ये भी भूलकर,
कि बाहर पारिजात के फूल, पायदान पर पड़े
अपने रौंदे जाने के इंतज़ार में हैं।

ख़ैर छोड़ो,
एक बात तो कहो
ये चमेली के तीन फूल
जो एक कतार में, इस पायदान पर बैठे हैं।
इनको देखा तुमने ?
सबसे आगे दाएँ से बाएँ देखो
सूख चुका, सूख रहा और एकदम ताज़ा...
तीनों तरह के फूल हैं।

और उधर देखो,
जहाँ दीवाली वाला लक्ष्मी के पैरों का स्टीकर लगा था।
स्टीकर भी पुराना हो गया।
एक पखवाड़े बाद, फिर से नया लग जायेगा।
खड़िया और गेरू के मांडने का रिवाज़ तो
...अब लगभग ख़त्म हो गया !

देखो तो...
मैं भी, तुम्हारी ही तरह बातें करने लगी।
इसी को कहते हैं साथ का असर।
अच्छा सुनो,
तुम्हारे जन्मदिन पर इसबार
मैं नहीं आ पाऊँगी !
मेरे भाव मगर ज़रूर तुम्हारे साथ होंगे।
समझे हो ...

तुम्हारी
मैं !







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