Friday 19 June 2020

आओ, हम एक इतिहास जी लें




पार साल जब तुम जयपुर गईं थीं
तब वहाँ से तुमने
एक तस्वीर ले भेजी थी
और लिखा था....
"तस्वीरें बोलती हैं,
यदि तुम सुन सको !"

सच कहूँ
तब तुम्हारी बात,
बिल्कुल समझ नहीं आयी थी
लेकिन आज...
जब मोबाइल के हैंग होने और अलर्ट आने पर
तस्वीरें डिलीट करने बैठा
तो ये तस्वीर
ख़ुद ही मुझसे बातें करने लगी।

शोख़ रंग से सजी एक स्त्री की पीठ।
मेहनतकश होने का सबूत देती
वृद्ध हो रही काया,
चाँदी का मोटा कड़ा पहने एक हाथ,
हाथ में हरक़त करता लौहे का चिमटा !

और उधर उस स्त्री के सामने...
मुस्कुराता हुआ एक चेहरा
आँखों पर ऐनक, सिर पर लिपटा गमछा
.....क्लीन शेव।
गौर से देखो तो भ्रूमध्य पर
एक हल्का केसरिया टीका।

बन चुकी रोटियाँ
आटे से सने हाथ !
शायद...
अब दाल उबालने
और सब्ज़ी छौकने की तैयारी है।

मन में ख़याल आया
कि खुसरो, मीर और ग़ालिब़ ने भी
अपने जीवनकाल में
कभी न कभी ऐसे दृश्य देखे ही होंगे।
पता नहीं उनके मन में
तब क्या उभरा होगा !
लेक़िन सच कहूँ,
मुझे तो ये तस्वीर देख कर
सिर्फ तुम्हारी याद आई।

कहते हैं कि उम्र अनुभव की निशानी होती है
चेहरे की हर झुर्री...
एक तज़ुर्बा होता है,
लेक़िन मुझे लगता है,
कि उम्र कहानियों का पिटारा होती है।
हर सलवट के नीचे
एक छिपी हुई याद होती है।
वो याद,
जिसका सिर्फ उस व्यक्ति से ही सरोकार होता है
जो उस उम्र को जीता है।
 वो कुछ बातें,
जिन्हें किसी से साझा नहीं किया जा सकता,
लेक़िन उनको याद करो
तो कभी मुँह में गुड़ की डल्ली घुल जाती है
या कभी ज़बान पर कसैला स्वाद उभर उठता है।

मैं उन पुरुषों की खोज में हूँ प्रिये
जिनके हाथों पर
आटा गूँथने और रोटियाँ बेलने के निशान मौजूद हों।
मैं उन स्त्रियों को भी ढूँढता हूँ
जो हाथ में चिमटा लिए
पीठ करके,
आगत औ अनागत के भय से मुक्त
चूल्हे पर रोटियाँ सेंकती रहें।

अच्छा ये तो बताओ
गरम-नरम रोटियों से
क्या तुम्हारी कोई याद जुड़ी है ?
मुझे अक़्सर ऐसी रोटियाँ देखकर
कच्चे आम और प्याज़ की
गुड़वाली चटनी याद आती है।

दरअसल,
सपनों का ताअल्लुक़
किसी बड़ी इमारत, चमचमाती गाड़ी
या शान-ओ-शौक़त से बिल्कुल नहीं होता।
हम तो यों भी छलावे में जिया करते हैं।
सपनों का ताअल्लुक़ रोटी से होता है।
सपनों का ताअल्लुक़ गेंद से होता है।
सपनों का ताअल्लुक़ चाँद से भी होता है...
और सपनों का ताअल्लुक़ पृथ्वी से होता है।
चाहे फिर,
वो कोई ग़रीब हो,बच्चा हो, प्रेमी हो...
या कि कोई नश्वर जीव !

इतिहास और कुछ नहीं,
सिर्फ जी लिया गया वर्तमान है !
आओ...
हम एक इतिहास जी लें।
ताकि जब हम,
दादा-दादी, नाना-नानी बन जाएँ
तो तीसरी पीढ़ी से कह सकें
कि हमने...
सन दो हज़ार बीस के मार्च के महीने में
एक सपने को जीया था !

तुम्हारा
देव



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