उदासी
मौसम में नहीं
दरअसल
हमारे भीतर होती है।
एक
वायरस की तरह,
जो
अनुकूल अवस्था की ताक में रहा करती है।
और
हम...
जब-जब
दुःखी होते हैं
तब-तब,
मौसम
को उदासी से जोड़ दिया करते हैं।
तुम
तो छठ पूजा तक
ख़ुश
रहने का बहाना खोज लेती हो।
मगर
हमारी तरफ़ ...
इस
पूजा का रिवाज़ नहीं
नतीज़ा...
कोहरे-भरी
आज की उदास सुबह में
मेरा
दिल...
फिर
से बैठने लगा।
हज़ार
वादे...
जो
मैं ख़ुद से करता हूँ।
उनमें
से एक पर भी क़ायम नहीं रह पाता !
वो
बीमार प्रेमिका याद आने लगती है,
जिसने
अपने प्रेमी के इर्दगिर्द ही
एक
सौतिया-डाह बुन लिया था।
परिणाम
वही...
घनघोर
उदासी, अवसाद
और साँस की तकलीफ़ !
और
जब दोनों के बीच ग़लतफ़हमियां दूर हुई
तब
तक उस नाज़ुक प्रेयसी के फेफड़े
जवाब
दे चुके थे।
वो
अक़्सर
उससे
मिलने अस्पताल जाया करता।
प्रेमिका
चुपचाप बिस्तर पर लेटी
छत
और पंखे को तकती रहती।
कभी
निबुलाइज़ेशन के वक़्त
तो
कभी दमा का पंप लेते समय
एकदम
निढाल हो जाती।
स्टेरॉयड
का तो काम ही
उलटा
असर दिखाना है।
इसीलिए
वो अपने प्रेमी से कहती
"बाबू...
अब
मैं तुम्हारे लायक नहीं रही !
जाओ
कोई सुंदर सी अपने लिये..."
ठीक
उसी वक़्त
प्रेमी
उसके होठों पर अपनी तर्जनी रख देता
और
वो चुप हो जाती।
आह...
कि
कितनी भारी पड़ती हैं...कुछ ग़लतफ़हमियां।
ये
सड़क देख रही हो,
बहुत
दूर तक जाती है ये !
अक़्सर
साफ़ रहा करती है
बस
आज ही ऐसा हुआ
कि
सुबह बुहारा नहीं गया इसको
और
मैं...
यूँ
ही घर से बाहर निकल आया सुबह-सुबह !
ये
फैले पड़े बादाम के पत्ते
वो
दूर उड़ता एक अकेला कबूतर
मेरी
अनजानी आशंकाओं की आहट
और
तुम्हारा इंतज़ार !
कितना
कुछ होता है
...हमें
उदास करने के लिए।
हर
लम्हा...
जिसे
हम ज़ोर से भींच लेना चाहते हैं।
वो
उतनी ही तेज़ी से
सर्र
र्र र्र र्र... करता हुआ फिसल जाता है।
और
फिर गिरकर चकनाचूर हो जाता है।
मैं
हतप्रभ सा खड़ा हुआ देखता हूँ।
साक्षी
बनना चाहता हूँ।
मगर
बन नहीं पाता !
तभी
कुँवर बेचैन का साया उभरता है।
"प्यार
का गाँव अजब गाँव है जिसमें अक़्सर ,
ख़त्म
होती ही नहीं दुःख की गली मीलों तक।।"
प्यारिया
मेरी,
स्वयंसिद्धा
हो तुम।
इस
छठ पर इतना करना
कि
एक अर्घ्य मेरी ओर से भी दे देना
और
सूर्य से गुज़ारिश करना
कि
मेरी सारी नमी, भाप
बन जाये।
करोगी
ना ऐसा ....!
तुम्हारा
देव
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