सर्दी
में कम्बल जैसे
वो
गर्म रूमानी पल !
जब
मैंने
हौले
से तुम्हारा चेहरा अपने हाथों में लेकर कहा था
"तुम
सिर्फ मेरी हो !"
और
तुम खिलखिला कर हँस पड़ी थीं।
जैसे
किसी ने गुदगुदी कर दी हो।
फिर
ठहरे हुए स्वर में बोली थी
"मैं
किसी की नहीं !"
और मैं...
डाल
से टूटे सूखे पत्ते जैसा
हवा
में तैरता रह गया था।
उफ़्फ़
ये
मेरी चाहत
और
वो तुम्हारी बेलौस ज़िंदगी।
जानती
हो..
सबसे
बड़ी समानता क्या है
कि
कुछ भी समान नहीं है
...हम
दोनों में।
कई
दिन हुए
तुमको
ख़त नहीं लिखे
लिखता
भी क्या...
मन
ही मन तुमसे
ढेरों
बातें जो कर लिया करता हूँ।
जब
भी तुमको सोचता हूँ
तो
बस...
एक
आकृति उभर आती है तुम्हारी
चेहरा
कभी नहीं उभरता।
लगता
है
जैसे
मुझमें ही से कुछ निकलकर 'तुम' बन जाता है।
जिसे
मैं प्यार किया करता हूँ।
कभी
कभी यूँ भी लगता है
कि
एक सीज़ोफ्रेनिक हूँ मैं !
जिसका
इलाज़ सिर्फ तुम हो
और
तुमसे जुड़ी हुई हर एक बात !
अचानक
तुम्हारी आवाज़
ज़ेहन
में गूँजती है
जानते
हो न देव
"देअर
इज़ अ वेरी थिन लाइन
बिटवीन
मैडनेस एंड जीनियसनेस।"
यकायक
वर्तमान से कट जाता हूँ मैं
एक
याद उभरने लगती है।
ये
उन दिनों की बात है
जब
सिनेमाघरों में
दिल
तो पागल है फ़िल्म लगी थी...नई - नई !
वो
मोबाइल का ज़माना नहीं था।
और
पागल दिल, तब
सिर्फ
प्रेम से ही बहला करता था।
मेरा
वो दीवाना दोस्त
फ़िल्म
देखने गया
जाने
फ़िल्म का जादू हुआ
या
उस बावरे का पागलपन
कि
बगल में बैठी लड़की पर मोहित हो
अपने
हाथ की अँगूठी,
उस
लड़की की अनामिका में पहना कर चला आया।
हाँ,
मुड़े-तुड़े
कागज़ पर
एक
लैंडलाइन नंबर भी लिख कर दे आया था, वो
उसे।
मगर
हुआ वही
जो
अक्सर होता आया है।
एक
या दो बार फ़ोन की घण्टियाँ बजीं
हर
बार फ़ोन किसी और ने उठाया
और
तूफ़ान जज़्ब हो गया
भीतर
ही भीतर कहीं।
आज
भी वो जाता है
एक
निश्चित दिन, निश्चित जगह
ग़ुलाब
की एक कली रखने।
लोगों
के लिये, ये सच्ची घटना
हँसी
का सबब हो सकती है
लेकिन
मेरे भीतर
एक
छुरी चलती है
और
बहुत कुछ चाक हो जाता है।
हाsss
ख़ैर....
इन
दिनों एन.एस.डी. का नाट्य उत्सव भारंगम चल रहा है
मेरा
नाटक भी खेला जायेगा
9
फ़रवरी, शाम 7 बजे कमानी ऑडिटोरियम दिल्ली में।
तुम
आओगी ना ?
पता
है...
मैं
क्या चाहता हूँ
कि
मेरा नाटक शुरू होने से ठीक पहले
तुम
आओ
और
मुझसे बहुत दूर बैठ जाओ
फिर
जब नाटक ख़त्म हो
तो
जल्दी से उठकर Exit point
पर जाओ
एक
नज़र मुड़कर मेरी पीठ देखो
बस....
फिर चली जाओ।
उसके
बाद
मैं
तुम्हें खोजूँ , खूब ढूँढू
और
जब थक कर फ़ोन लगाऊँ
तो
तुम हौले से कहो
"आज
तो मैं बहुत दूर आ गयी देव
कल
फिर मिलने आऊँगी तुमसे
सुबह
ठीक साढ़े नौ बजे
श्री
राम सेंटर पर मेरा इंतज़ार करना।
कॉफ़ी
पीयेंगे... साथ-साथ !"
आमीन
तुम्हारा
देव
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