Wednesday, 17 June 2020

...तो सुरों पर धूल चढ़ जाएगी





बावरे पीहू,
मोहब्बत कब मिलन की मोहताज़ हुई।
जो तुम कभी न थे
अब वो तो न बनो।
कई बार छटपटाते देखा है मैंने तुमको
मगर इस बार की छटपटाहट
मुझे पीड़ा पहुँचा रही है।
दर्द हद को पार कर गुज़र जाये तो अच्छा।
मगर ठहर जाए तो नासूर !
नासूर ना बनने दे पगले
तेरे प्यार और उसके एहसास को !

आह....
ये मैं क्या कह बैठी तुमको !!
"प्यार जब हद से बढ़ा
सारे तकल्लुफ़ मिट गए,
आप से फिर तुम हुए
फिर तू का उनवा हो गए।"
आज तो मैंने 'तू' कह कर
संबोधन के तल को छू लिया रे देव !
और तू बावरा ....
उस मिलन को छटपटा रहा है
जो अभी प्रकृति ने मुक्कमल ही नहीं किया।
गुज़र जाने दो इस बेचैन छटपटाहट को
मेरे अच्छे देव !
मत रोको इसे ...नासूर बनने के लिए।

देव सुनो,
सर्द दिनों की सुबह में
कोहरे की चादर ओढ़े
चुपचाप बहती नदी की तरह होती हैं हम लड़कियाँ !
वो चादर ही हमारा रहस्य, हमारी निजता है।
प्रेम की राह पर चलकर
तुम उसके पार तो आ सकते हो।
मगर...
उस भाव को नहीं भुला सकते
जिसने तुमको उस राह का बटोही बनाया।

क्या सोचते हो तुम ?
कि एक टैटू भर बनवा लेने से
मैं वो नहीं रह जाऊँगी
जिससे तुमने प्यार किया।
एक टैटू भर से
क्या मैं कोई और हो जाऊँगी ?
बोलो ...!

हाँ देव,
टैटू बनवाते वक़्त
पीड़ा और जलन दोनों हुए थे मेरे शरीर को
मगर मेरा मन ... प्रफुल्लित हो उठा था।
संगीत का सुर,
और उस पर बैठी हुई तितली
कितना अनूठा है ना !
अक्सर परेशान हो जाती थी
ये सोचकर
कि अपने मख़मली भावों को टैटू का रूप कैसे दूँ।
और फिर अचानक ये ख़याल आया।

जानती हूँ
तुम्हें नहीं पसंद शरीर पर टैटू।
लेकिन मेरा तो सपना था ये
बहुत साधारण, मगर अलग सा टैटू !

एक बात तो बताओ
मेरे अंतस में
मैंने तुम्हारा नाम लिख लिया
अमिट स्याही से !
ये तुम्हें नहीं दिखा ?
इस पर कभी कोई ऐतराज़ भी नहीं किया।
तो टैटू को लेकर इतना पज़ेसिव क्यों हो रहे।

और हाँ,
वो गिटार....
कभी जिसके सात सुरों को तुम सहलाया करते थे।
तुम्हारे घर में सबसे आख़िरी कमरे के
अंधेरे कोने में पड़ा था।
मैं उसे ले आयी हूँ।
यदि साज़ को साफ नहीं रखोगे
तो सुरों पर धूल चढ़ जाएगी।
समझे हो ...
थोड़ा धीरज धरो
जल्द ही मिलने आऊँगी।
मिट्ठू मेरे .....

तुम्हारी
मैं !



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