"मैं
सोचता हूँ,
एक
उम्र के बाद तुम घर वापस नहीं जा सकते।
तुम
उसी घर में वापस नहीं जा सकते,
जैसे
जब तुमने उसे छोड़ा था।"
ये
मैं नहीं कहती...
ये
तो तुम्हारे अज़ीज़ ' द निर्मल वर्मा ' ने कहा है।
देव
मेरे,
किससे
भाग रहे हो....
ख़ुद
से ?
परिस्थितियों
से ?
या
उस दर्द से ..
जिसको
तुमने
अपने
सबसे भीतर वाली आलमारी में
क़रीने
से तह लगा कर रख दिया है !
सच
कहूँ तो हर दर्द एक धोखा है
....एक
विश्वासघात !
और
इंसानी फ़ितरत कुछ ऐसी है
कि
वो,हर विश्वासघात को
सिर्फ
किसी दूसरे इंसान से जोड़ कर देखना चाहता है।
वो
भूल जाता है
कि
कभी उसका अपना शरीर धोखा देता है।
तो
कभी मन धोखा दे देता है।
और
कभी इंसान
अपने
आप को धोखा देता रहता है।
यूँ
ही बिना बात !
जानते
हो
मुझे
तुम्हारी छोटी-छोटी कविताएँ कभी नहीं रुचीं।
और
तुम्हारे ख़त हमेशा...
मुझे
मेरी ही बात लगे।
शब्द
अक्सर वो सब कहाँ कह पाते हैं देव
जो
हम महसूस किया करते हैं।
अभी
की ही बात ले लो
तुम्हारे
पुराने मोबाइल की नई रिंगटोन को
तुम
कहाँ याद रख पाते हो !
और
फिर छटपटा कर मुझसे पूछते हो कि
"चाह
कर भी
वो
धुन मेरे ज़ेहन में क्यों नहीं उभरती
मैं
भूल क्यों जाता हूँ हर बार !"
मेरे
भोले बलम
धुन
को याद रखने के शब्द,
लेखक
के पास कहाँ होते हैं ?
ये
छोटी सी बात समझ क्यों नहीं पाते तुम !
आज
मुझे पूना का वो बिज़नेस-मैन याद आ रहा है
जिसका
जन्म अंग्रेज़ों के ज़माने में हुआ था।
कालीसिंध
नदी के पार !
उसी
कस्बे में
जहाँ
तुम्हारे पिता भी जन्मे।
ज़िन्दगी
के सारे रंग देख लेने के बाद
जब
जड़ों ने उसे बुलाया
तो
अपनी मिट्टी को खोजने निकल पड़ा वो।
बाप
- दादा का नाम लेता
बुज़ुर्गों
से निशानियाँ पूछता
आख़िर
उस जगह पर जा पहुँचा
जहाँ
वो जन्मा था।
वहाँ
जाकर देखा...
तो
बस खंडहर !
ऐरन
के कुछ बड़े - बड़े पत्थर
टूटी
हुई दीवारें
और
उघड़ी हुई आसमानी छत !
बैठ
गया वो वहीं
और
वहाँ की धूल - मिट्टी उठाकर सिर पर डालने लगा।
फिर
लेट गया वहीं रोते - रोते !
सच
ही तो है
"
तुम, उसी घर में वापस कभी नहीं जा सकते;
जैसा
जब तुमने उसे छोड़ा था। "
शरीर
से परे चले आओ देव,
दर्द
भी परे चला जायेगा।
अरे
हाँ,
सिंदूर
के फूल और बीजों की वो तस्वीर
जो
हमने मिलकर खींची थी...
तुम्हें
भेज रही हूँ।
जानते
हो ना
तुम्हारी
गोबु - गोबु हथेलियाँ मुझे कितनी भाती हैं।
प्रेम
भी सिंदूरी हो जाता है,
एक
मुक़ाम पर आकर !
सोचना
कभी ... इसके बारे में।
दशहरा
मुबारक़ !
तुम्हारी
मैं
!
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