कई
बार
मैं
वो सबकुछ नहीं करना चाहता,
जो
तुम
मुझसे
करने को कहती हो।
मगर....
एक
अजीब सा सम्मोहन
मुझपर
तारी हो जाता है।
और
मैं !
....
मंत्रमुग्ध सा,
तुम्हारे
ख़यालों के पीछे चल पड़ता हूँ।
इस
दीवाली पर भी
ऐसा
ही हुआ।
मैं
घर पर आराम करना चाहता था।
और
तुमने...
ज़बरदस्ती
मुझे
गाँव
जाने वाली बस में बैठा दिया।
गाँवों
में रात अब भी जल्दी हो जाती है।
उस
लिहाज़ से मुझे देर हो गई थी।
सो
गाँव पहुँचकर
डिनर
में बिस्किट्स खाए,
और
पानी पीकर, चुपचाप सो गया।
सुबह
जल्दी जागा
पर
खेतों में नहीं गया।
शायद
मेरे मन में तब भी
तुम्हारे
लिए अप्रत्यक्ष विरोध का भाव था।
दोपहर
का भोजन कर
घूमने
निकला ही था,
कि
तभी सड़क के उस पार से
रंभाने
का आर्त्र स्वर सुनाई दिया।
जाकर
देखा
तो
एक नन्हा सा गाय का बछड़ा
बंधा
हुआ था।
मेरे
मन में
जाने
कौन सा विद्रोह बाक़ी था
जो
तत्क्षण फूट पड़ा।
बड़े-बड़े
कत्थई दरवाज़ों वाले
उस
घर पर जाकर, ज़ोर से दस्तक़ दी।
घूँघट
काढ़े एक महिला बाहर आई
आँखों
पर डले झीने पर्दे से
मेरा
तमतमाया चेहरा देखा
और
सारा माज़रा समझ गई।
बेहद
शांत स्वर में बोली
"गइया
चरने गई है।
बछड़ा
अभी छोटा है।
साथ
जाता, तो थक जाता।
बाँधते
नहीं, तो खो जाता।"
बस....
इतना
कहकर वो चली गई।
और
मैं....
निरुत्तर
सा खड़ा रह गया।
चुपचाप....
कभी
बछड़े को,
तो
कभी लोहे के खंभे से बंधी उसकी रस्सी को देखता !
वापस
जाने के लिये पलटकर
बस
एक-दो कदम ही चला था
कि
तभी,
वो
दृश्य दिख गया,
शायद
जिसके लिये
तुमने
मुझे गाँव भेजा था।
नीम
के पेड़ से लटकती
गेंदे
के फूलों की बंदनवारें।
लटकती
बंदनवारों के नीचे
ठेले
पर रखे शुभता के प्रतीक, आम के पत्ते।
एक
मकान
जिसके
अगले हिस्से पर डली लोहे की चादरें।
चुपचाप
नीचे बैठा,
अपनी
माँ की राह तकता, गाय का बछड़ा।
और
उसके ठीक पास,
दूध
वाले की बंद दुकान
जिसके
बाहर रखा, दूध का बड़ा सा मर्तबान !
जब
तुम मुझसे कहती हो
"I want an atmosphere, out of this
world."
तब
मैं
इस
सोच में पड़ जाता हूँ
कि
इस दुनिया में रहकर
इस
दुनिया से परे, कोई जहान कैसे ढूँढा जाए ?
लेकिन
इस
एक पल ने
मुझे
मेरे प्रश्नों का हल दे दिया।
अचानक
स्मृतियाँ झरने लगीं।
बहुत
बचपन के दिन...
गेंदे
के फूलों की पंखुड़ियाँ निकाल कर,
उनके
नीचे छिपी
गोल-गोल
ढिबरीनुमा आकृति को खाया करते।
गाँव
के बाहरवाले सुनसान किले को
दूर
से देखते,
और
पास जाकर डरा करते।
मठ
वाले हनुमानजी के मंदिर में
होने
वाले अन्नकूट की राम-भाजी का स्वाद !
नदी
पार शीतला माता के मंदिर वाले
इमली
के विशाल झाड़ की कच्ची-पक्की इमलियाँ !
...और
कबीट के फल की
हड्डियाँ
हिला देने वाली खटास !
तभी...
फिर
से तुम याद आ गईं।
अच्छा
किया, जो इस दीवाली पर
तुमने
मुझे गाँव भेज दिया।
एक
सपोर्टिंग सिस्टम है ये
हमारी
आत्मा और शरीर के बीच तालमेल बनाये रखने का।
दो
दिनों से यहीं हूँ,
बहुत
खुश हूँ।
सच
ही कहती हो
इस
दुनिया से परे भी, एक जहान होता है।
मगर
हम उसे किसीको दिखा नहीं सकते
बस
महसूस कर सकते हैं।
एक
बात और
बेसन
की मीठी चक्कियों का स्वाद
इसबार
मैं अकेले ही ले रहा हूँ।
अगली
बार,
हम
साथ होंगे।
अपना
ख़याल रखना।
तुम्हारा
देव
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