Wednesday 17 June 2020

पूर्वजों के बाड़े का इकलौता प्रहरी



दास्तानगो, दास्तान  कह के चले जाते हैं।
उसके बाद लोग
उन किस्से कहानियों को कहीं पढ़ते हैं, किसी से सुनते हैं।
लेकिन,
कभी-कभी ऐसा भी होता है
कि कोई ज़िंदा दास्तान
हमारे साथ-साथ चलती है।
हमारे आस-पास रहती है।
और हम
उसे तब समझ पाते हैं
जब वो बड़े करीब से होकर,
हमसे दूर चली जाती है !

जब पहली बार
मैंने उनको देखा था।
एक विचित्र से आकर्षण में बिंध गया था।
सलेटी रंग की मटमैली हो चुकी कुर्सी
झरते हुए हरसिंगार के फूल
कुर्सी के हैंडल पर थाप देती उनकी उंगलियाँ
और बहुत धीमे स्वर में बजता
एक इकलौता वो भजन !
"आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।"

एक निश्चित समय था
मेरे वहाँ से गुज़रने
और उनके वहाँ बैठने का !

फिर धीरे-धीरे
आँखों के रस्ते सम्बन्ध बनने लगे
हलकी मुस्कान का वो आदान-प्रदान
बातचीत में बदल गया।
" अब घुटने ख़राब हो गए हैं
ज़्यादा चल नहीं पाता,
इसलिए सुबह यहाँ बैठ जाया करता हूँ।"

एक अंतराल....
"दो बेटियाँ हैं
बहुत पढ़ी लिखी हैं,
लेकिन दोनों ने शादी नहीं की।"

और फिर कुछ दिनों का एक लंबा अंतराल....
"छोटी बेटी नहीं रही,
डिप्रेशन में थी बहुत समय से।"

एक गहरी साँस....
"क्या करें
जीना तो पड़ता ही है !"

ना जाने क्या हो गया था मुझे उन दिनों
उनके सामने चहक कर हँसता था
ललक कर बातें करता था
और अकेले में रो दिया करता था।

खैर...
उसके बाद के दिन बड़े हँसी-ख़ुशी गुज़रे।
ऐसे ही दिनों की बात है,
एक बार उन्होंने
हरसिंगार को अंजुरी में भर कर
मुझे ज़ोर से पुकारा...
"ओ देवों के देव
ये फूल ले जाओ
किसी सूखे हुए पेड़ को खोजना
और उसके तने के चारों ओर इन्हें बिखेर देना।"
अपना विशिष्ट सम्बोधन सुन कर मैं अचकचा उठा
तो बोले...
"प्यार से पुकारा गया
हर नाम अच्छा होता है।"
फिर कहीं शून्य में जाकर कहने लगे
"पूर्वजों के बाड़े का इकलौता प्रहरी हूँ
चले आया करो मुझसे बतियाने।"

और फिर एक दिन...
वो नहीं रहे !
मैं शहर से बाहर था उन दिनों।
अरसा हुआ
मैंने उस रस्ते से जाना छोड़ दिया।
मगर कल अचानक
मुझे उनकी याद आयी
और मैं वहीं जाकर खड़ा हो गया।
वो सलेटी कुर्सी अब भी खाली पड़ी थी वहीं
और उस पर हरसिंगार के फूल ढलके पड़े थे।
ना जाने कहाँ से वही भजन बजा
"आरती कुंजबिहारी की"
मेरा ध्यान कुर्सी के हैंडल पर गया
और तभी...
एक हरसिंगार का फूल झर कर हैंडल पर गिरा !
...मानो थाप दे रहा हो
भजन की धुन पर।
लगा जैसे 'वो' यहीं हैं
मेरे बिल्कुल पास !

सुनो
इस बार सर्वपितृ अमावस्या पर
जब तुम पुरखों को श्राद्ध करो
तो खीर-पूड़ी का एक ग्रास
'उनके' लिए भी रखना
भूलना मत...
मुझे सुक़ून मिलेगा !

तुम्हारा
देव




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