वे दो सखियाँ थीं !
जिनको अपने हमराज़ होने पर बड़ा नाज़ था।
दोनों तितलियों की तरह उड़ा करतीं
जब-जब मिलतीं, ज़ोर से खिलखिलातीं
एक, जो उनमें थोड़ी बड़ी थी
उसने अपनी सखी को
उस प्रेमी की कवितायें सुनाईं
जो अक्सर उदास रहा करता था।
और ये भी बताया
कि ये प्रेमी ......
कुछ अलग सा है !
इसकी उदासी मुझे सुख देती है,
और इससे दूरी, मुझे उदास करती है।
फिर ऐसा हुआ
कि एक दिन वो
अपने प्रेमी के लिये,
मोगरे के कुछ फूल लेकर आयी।
उन फूलों की सुगंध तो मादक थी ही
लेकिन एक विचित्र सा
बैंगनी रंग का मोगरा भी
उन फूलों में शामिल था।
जो उन सफ़ेद फूलों से इतर
बड़ा अनूठा लग रहा था।
प्रेमिका ने उस चिर उदास प्रेमी की हथेली पर
मोगरे के फूल उड़ेलते हुये कहा –
“ ये लो ........
मेरी ख़ुशबू !
सँजोये रखना इसे
जब तक कि मैं वापस न आऊँ
कहीं जा रही हूँ
लौटकर मिलूँगी।”
वो चली गई
प्रेमी हथेली में फूल लिए उनको देखता रहा।
उँगलियों में एक अँगूठी चाँदी की और एक अष्ट-धातु की।
हथेली में फूल और कलाई पर काला धागा
जाने किसकी नज़र से बचने के लिए
... एक चिरंतन कोशिश !
प्रेमी की नरमाई आँखें, पथराने
लगीं।
विरह के पलों से बचने के लिए
किसी आगंतुक के इंतज़ार में !
तभी...
दूसरी सखी वहाँ आ पहुँची
और संयोग तो देखो
कि उसने हल्के नीले और बैंगनी वस्त्र पहने हुये थे।
“दुखी हो,
मेरी सखी के विरह में...
बोलो !”
कहकर वो खिलखिला पड़ी।
और ये....
उसकी बीत चुकी हँसी की गूँज के सहारे
अपनी प्रेयसी के बारे में सोचने लगा।
जाने किस ख़याल से बंधा हुआ
एक उड़ती नज़र डालकर बोला –
“अक्सर नीला रंग ही क्यों पहनती हो !
उदास नहीं करते तुमको नीले रंग ?
कासनी रंग तुम्हें कैसा लगता है ?”
तिस पर वो बोली –
“मैं नहीं जानती कासनी रँग को
मैं सिर्फ नीला कहाँ पहनती !
मुझे तो उसके शेड्स पसंद हैं
देखो, मेरे हाथों पर जो
कपड़ा है
उसका रँग ओशियन-ब्लू है
और बाकी पूरी ड्रेस का रँग पर्पल-ब्लू !”
फिर वो जाने लगी
तो उस प्रेमी ने आवाज़ दी उसको
और मोगरे के फूल, उसके हाथों में थमा
दिये।
फिर धीरे से बोला.....
“ये फूल तुम्हारी सखी ने दिये हैं
इनमें एक बैंगनी मोगरा भी है
शायद तुम्हारे आज के रँग के लिए !
मेरा क्या है ..
मैं तो ख़ुशबू के सहारे भी जीवन गुज़ार सकता हूँ।”
वो वैसे ही खिलखिलाती हुई चली गई
और ये,
इस सोच के साथ अपराधबोध से मुक्त हुआ
कि फूलों के मुरझाने से पहले
उनका सार्थक उपयोग हो गया।
दिन गुज़रे ...
कुछ और दिन गुज़रे
उदासी और और गहरी होती गई।
प्रेयसी नहीं आई
तो प्रेमी उसकी खोज में
एक दिन बगिया जा पहुँचा।
वहाँ दोनों सखियाँ खिलखिला रही थीं
प्रेमी जब प्रेयसी के पास पहुँचा
तो दूसरी सखी, वहाँ से दूर
अमराई तले जाकर बैठ गई।
प्रेमी की आँखें नम और नर्म थीं
उसने तैरते प्रश्नो के साथ, प्रेयसी की आँखों में झाँका
प्रेयसी के चेहरे पर कोई भाव नहीं था
“ये सब क्यों ?”
बड़ी मुश्किल से वो बोल पाया।
प्रेमिका ने बगिया के उस कोने की तरफ इशारा कर दिया
जिधर मोगरे के फूल लहक रहे थे।
वो कुछ नहीं बोला ...
पलट कर चल दिया
अपने पैरों को उठाना, उसे बोझ लग रहा था
शायद आज ....
उदासी आँखों के रस्ते, पैरों में
उतर आई थी।
ये सिर्फ़ कहानी है
इसे हक़ीक़त न मान बैठना !
समझी हो .....!
तुम्हारा
देव
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