दगाबाज़
हो गया है मौसम भी अब !
पूरे
साल में,
सिर्फ़
ये दो महीने ही तो लुभाते हैं मुझको...
क्वांर
और कार्तिक के !
वो
भी सहन नहीं हो रहा अब
इस
मौसम को।
लोग
बताते हैं कि हिरन का रंग भी
सांवला
कर देती है क्वांर की धूप
मगर
इस बेवफ़ा क्वांर को देखो
अपने
साथ बारिश ले आया इसबार !
तुम्हीं
कहती हो ना...
"Do it
today,
Tomorrow it may become illegal !"
तो
फिर सावन वाला मिज़ाज
अब
तक क्यों बरक़रार रखा है, इस मौसम ने ?
ये
तो अपराध हुआ ना !
मुझे
क्या पता था,
कि
बारिश की बूँदों के बीच
जब
चमेली की महक़ लेने जाऊँगा
तो
दर्द से कराह उठूँगा।
प्यारिया
मेरी...
मैंने
देखा एक पतंगे को
चमेली
के पत्ते की ओट लेकर,
तूफ़ानी
बारिश से जूझते हुए !
तेज़
हवा,
आसमान
से कहर बरपाती
बे-मौसम
बारिश की मोटी धारा
और
अपनी आँखें खोले हुए
रात
इग्यारह और बारह के बीच
चमेली
के छोटे से पत्ते की ओट में
बारिश
से जूझता, एक
ना-मामूली पतंगा !
"दिल
ही तो है न संग-ओ-ख़ीश्त दर्द से भर न आये क्यूँ,
रोयेंगे
हम हज़ार बार कोई हमें सताये क्यूँ।"
जब
ग़ालिबन कुछ नहीं होता
तब
ही ये ग़ालिब क्यों याद आता है मुझको !
पूरे
डेढ़ सौ साल हुए... चला गया।
मगर
अब भी मेरा पीछा नहीं छोड़ता।
हाँ,
मैं
आहत होता हूँ।
हाँ,
मैं
आहें भरता हूँ।
अभी
तक तो इंसान ही थे
अब
मौसम को भी कोसता हूँ।
अक़्सर
कहा करती थीं न ..
"देव,
निंदोड़े
हो तुम ...बिल्कुल निगोड़े
लेटते
ही खर्राटे लेने शुरू कर देते हो।"
लो....
अब
सारी-सारी रात नींद नहीं आती
करवट
बदलता रहता हूँ बस्स।
शायद
तुम्हें सुक़ून मिल रहा हो, ये जानकर !
और
हाँ,
मैं
तुम जैसा नहीं
कि
रातों को जागकर क्रिएटिव बना रहूँ।
या
तो करवट बदलता हूँ
या
फिर,
गुज़रे
हुए का अफ़सोस मनाता रहता हूँ।
जाने
कितना कुछ पीछे छूट गया अब
मगर
मेरा नॉस्टैल्जिया,
मुझसे
कभी नहीं छूट पाया।
अनजाने
भय से आक्रांत रहने वाला मैं...
सुखी
हूँ अपने 'स्व' के साथ !
नहीं
बनना मुझे सुपर ह्यूमन !!
मगर
हाँ,
कर
सको तो इतना कर दो,
इस
बेदर्द मौसम तक
मेरा
संदेसा पहुँचा दो।
ऐसा
करोगी ना.....!
तुम्हारा
देव
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