Wednesday, 17 June 2020

अकेलापन, कार्तिक मास और तुम





वो,
जो अपना घर छोड़कर चले जाते हैं।
किसी नदी के किनारे,
किसी पहाड़ पर,
या किसी जंगल में।
कौन होते हैं वो लोग !
बताओ न सखी....
दुनिया से भागने वाले ?
ख़ुद से भागने वाले ?
या फिर ख़ुद को खोजने वाले !

एक बालक,
तेरह-चौदह साल का
जब अकेला सड़क पर चुटकी बजाता हुआ चले
तो सारे स्ट्रीट-डॉग्स उसके पीछे चलने लगें।
एक अकेली युवती,
लगभग पैंतीस बरस की
दिन भर थकती रहे
और रात को रोते-रोते
अपनी सखी, सफेद बिल्ली के
गले में बाँहें डाले सो जाए।

कोई जंगल, पहाड़ या नदियों का किनारा ढूँढता है।
तो कोई जानवरों में आसरा खोजता है।
क्या जीवन सचमुच
इतना अकेला है ?

तुम तो जानती हो ना
कार्तिक का मास, मुझे कितना लुभाता है।
लेकिन कभी-कभी यही कार्तिक
मेरे मन में संशय के बीज भी बो देता है।
संशय..
उन लोगों के प्रति
जो प्रेम को लिखते और पढ़ते तो हैं
मगर कभी समझ नहीं पाते !
और मुझे लगने लगता है
कि ये ही लोग
मानव प्रजाति के लिये, सबसे बड़ा ख़तरा हैं।

बचपन में पिताजी बताते थे
कि कैसे...
जब हिरोशिमा पर बमबारी हुई
तब,
उत्साह से भरा हुआ
स्कूल के लिए तैयार होता
जूतों के फ़ीते बाँधता एक बच्चा,
उसी मुद्रा में, एक कंकाल में तब्दील हो गया।
सिहर जाया करता था मैं तब
और अब सोचा करता हूँ
कि कैसे कोई ...
उफ़्फ़, उफ़्फ़ !
छोड़ो, अब नहीं कह पाउँगा।

सच कहूँ
मुझे अक्सर लगता है
कि मेरी कोई खोज ही नहीं है।
कुछ नहीं खोजना मुझे !
मुझे सिर्फ जीना है।
तुम्हारे साथ, तुम्हारे एहसास के साथ !

और फिर, उसके बाद...
कोई खोज,कोई प्यास
कुछ भी अधूरा नहीं रह जायेगा।

हम सब
अपनी-अपनी बन्द खिड़कियों के साथ आये हैं।
खिड़की के उस पार
एक रोशनी है
जीवन की, सार्थकता की।
और इस पार है
...एक बेचैन बेबसी !!
सिर्फ प्यार ही वो ताक़त, वो माद्दा है
जो,
उस खिड़की को भीतर से धकेल कर,
बाहर से खींच कर खोल सकता है।
सखिया मेरी,
मेरा वो माद्दा, मेरी वो ताक़त
तुम हो,
सिर्फ़ तुम।

तुम्हारा
देव




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