Wednesday 17 June 2020

कोरी कल्पना...





वैसे तो वहाँ चार दरख़्त थे
लेकिन नज़र तीन ही आते थे
दो जुड़वाँ दरख़्त...
बिल्कुल एक ही लगते थे।
 उन दरख़्तों के बीच
एक बैंच हुआ करती थी
लाल, पीली और नीली पट्टियों वाली
जो हरदम चमकती रहती।
गहरा नीला रंग, दूर से काला नज़र आता
ठीक पास वाले ब्लाइंड हॉस्टल के काले बोर्ड जैसा।

उन दोनों के वहाँ आने का समय तय नहीं था
लेकिन रुकते देर तक थे।
अपनेआप में खोए,
चुप्पे कदम नर्म-खुरदरी घास पर रखते हुए।

वो किसी क़िताब में डूबा रहता,
और लड़की बड़े गौर से
आसपास की बारीकियों का मुआयना किया करती।
पीले पेट वाली, छोटी काली चिड़िया को
इधर से उधर फुदकते
और सीटियाँ बजाते देख,
लड़की मचल उठती...
"देखो-देखो
कितना छोटा है इसका जीवन !
फिर भी कितनी चहकती रहती है।"
विचारों में खोया लड़का, अचकचा कर पूछता
"...जीवन ?"
और फिर से क़िताब में तल्लीन हो जाता।
लड़की झपट कर क़िताब छीन लेती
तब वो...
उसकी आँखों में अजीब तरह से देखता,
लड़की की आँखें हौले से रिसने लगतीं।
वो पूछता, उसे मनाता
लेकिन लड़की कुछ नहीं कहती
शायद पिछले जन्म से ही
ये शपथ ले कर आई थी,
कि मन की बात कभी साझा नहीं करेगी
भले ही तन की दूरियाँ शून्य हो जाएँ।

वो जो ऊपर बिजली के तार हैं ना..
एक बार उस पर बैठा कबूतर
धम्म से नीचे आ गिरा,
बस उस दिन के सिवा
कभी उसके रोने का
कोई कारण पता नहीं चल पाया।

एक बार  यूँ भी हुआ था
कि बैंच पर बैठी लड़की के बंधे हुए बाल
लड़के ने अनायास ही खोल दिये थे।
और उसके पास सरक आया था।
लेकिन लड़की ने...
दोगुनी दूरी बना ली थी तब !
फिर दोनों हाथ बाँधे
ऊपर के दाँतों से निचला होंठ काटते हुए
मंद-मंद मुस्कुराती, धीमे डग भरती
वहाँ से चली गई थी।
उसने ग़ुलाबी टी-शर्ट पहनी थी उस दिन
मुझे अच्छे से याद है।

ना...!
उनकी उम्र का अनुमान मत लगाना
वे दोनों कभी सौलह के लगते,
कभी बत्तीस के, तो कभी अड़तालीस के !

सुना था किसी से
...बहुत बाद में मैंने
कि फिर,
उनमें से किसी एक को डिमेंशिया हो गया !
...और सारी याददाश्त जाती रही।
एक सबकुछ भूल गया;
दूसरा कभी कुछ भूल ही ना पाया।

अब दोनों आते थे
मगर वो बात नहीं रही।
एक को सबकुछ याद था।
दूसरा सबकुछ बिसरा चुका था।
फिर..
उनमें से एक ग़ुम हुआ
...दूसरा आता रहा।
और एक दिन, बैंच पूरी रीती हो गई।
दोनों का कुछ पता नहीं चला।

याददाश्त किसकी ग़ुम हुई ?
पहले कौन जुदा हुआ ?
इस सबके फ़ेर में मत पड़ना !

वैसे सुनो...
ऐसा कुछ, कभी नहीं हुआ।
....कभी भी नहीं !
ये सब तो, मेरी कल्पना भर थी।
सिर्फ़ कोरी कल्पना।

तुम्हारा
देव




No comments:

Post a Comment