“ युन्गे केम बाल्ड वीडर
नख हाऊस
गेह निश्त वीडर हिन आऊस !! "
सुना है तुमने ये जर्मन
गीत ?
मैंने भी अभी तीन दिन पहले
ही सुना ... ईद पर पिछले मंगलवार ।
एक बुजुर्ग ने सुनाया गा कर...
एक किशोरी का प्रेम-गीत !!
जिसमें वो अपने प्रेमी को बुला
रही है...
आकर फिर कभी न जाने के लिए
।
उस दिन सुबह देर से जागा ।
आईने के आगे खड़ा था ....
तुम्हारे ख़यालों की तपिश
कभी भोर का राग सुना रही थी ,
तो कभी ख़ुमारी में ले जा
रही थी ।
कि अचानक मोबाइल की घंटी
बजी...
उधर से आवाज़ आई
“ ईद की मुबारकबाद जनाब ।
घर आ जाइये,
इसी बहाने देव से भी
मुलाक़ात हो जाएगी रु-ब-रु । "
आवाज़ में ऐसा बेलौस अपनापन
था कि रोक नहीं पाया मैं खुद को !
और चला गया ईद मिलने...
उस शख़्स के घर, जिससे एक ही शहर में रहकर भी पहले कभी नहीं मिला ।
पर वो मुझे जानता है !
नहीं मुझे नहीं ...
वो तुम्हारे देव को जानता
है ।
दरवाज़े पर एक रोशन उम्रदराज़
चेहरे ने इस्तक़बाल किया ।
ज़बाँ ऐसी कि गुड़ की डल्ली
भी फीकी पड़ जाये ।
मौला ....
मेरे शहर में इतने हसीन
लोग भी बसते हैं !
कुछ देर बाद वो शख़्स आया
जो तुम्हारे देव से मुहब्बत करने लगा है ।
... मेरे इन ख़तों के कारण
!!
और जब मैं नासिर अहमद ख़ान
साहब से गले मिला तो लगा, तुम दूर खड़ी हो कर मुस्कुरा रही हो
।
तुम्हारी दुआ फूल-फल रही
है ।
तुमने कभी मेरे किसी ख़त पर
अपनी राय नहीं दी ।
... पर एक दुआ दी है !
कस्तूरी बन महक रही है वो
दुआ ,
मेरे ख़तूतात में ...
मेरे हर लफ़्ज़ में,
मेरी रोशनाई में !
“ देव तुम्हारे प्यार में
बरक़त होती रहे ... हमेशा ! "
यही कहा था न तुमने ?
देखो तो सखी ...
आज मैं एक रिश्ता जोड़ आया
हूँ ।
लग रहा है कि मेरा
बचा-खुचा अधूरापन भी अब पूर्ण हुआ जाता है ।
कि तुम्हारे लिए मेरा
प्यार और–और बढ़ता जा रहा है ।
जब वहाँ से विदा लेकर
निकलने लगा,
तो पता है नासिर भाई के
अब्बा डॉ. मसूद अहमद ख़ान साहब मुझसे क्या बोले ?
कहने लगे ....
देव जादूगर हो कोई ?
मुझे ऑस्टियो ऑरथराइटिस है
!
... लेकिन तुम्हारे साथ का
असर देखो, मैं ख़ुद में जवान महसूस कर रहा हूँ ।
कुछ कह न सका मैं ...बस
मुस्कुरा भर दिया !
लगा कि जैसे उन दो अनुभवी
आँखों ने मेरे अंदर तुमको देख लिया ।
क्योंकि असली जादू तो
तुम्हारा है ... मेरी जादूगरनी !
“ मैं तो बस चेहरा हूँ ,
आत्मा तुम्हारी है । "
सुनो ,
मेरे होंठों पर अचानक मीठी
सिवईं का स्वाद उभर आया !!
तुम्हारा
देव
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