Wednesday 2 July 2014

वो बेल्ट अब नहीं रहा



यदि सौ प्रतिशत सजगता आ जाये तो इन्सान साधारण कहाँ रहे ?
वो तो फिर संत हो जाये !!!
कहे गए शब्द , बिताये हुये पल और घटित हुई घटना को हम तब उतनी संजीदगी से कहाँ जी और सोच पाते हैं …
अक्सर उनका मोल तो तब पता चलता है , जब वो याद बन जाते हैं।

कुछ ख़ास नहीं …
बस वो बेल्ट अब नहीं रहा।
टूट गया कल सुबह … !
जब मैं ऑफिस जाने के लिये तैयार हो रहा था।
बेल्ट का हुक बक़ल में लगाने के लिये जैसे ही पट्टा खींचा … उसका पीतल वाला सुन्दर सा सिरा टूट कर हाथ में आ गया।
एक हलकी सी आवाज़ भर हुयी, और मेरे भीतर गहरे कहीं कुछ चटक गया।
अनेकों स्मृतियाँ एक साथ मुझ पर तारी हो गयीं।
स्मृतियाँ जिनका संबंध सिर्फ़ तुमसे था।

" ईंट के रंग की जींस पहना करो … और हाँ गहरे हल्दी के रंग की भी !"
तुम बोली थी।
और इस बात पर मैं तुम्हारी खिल्ली उड़ाने लगा था।
दरअसल वो मेरे अन्दर का ही कोई चोर था , जो रंगों को भी स्त्री और पुरुष में बाँट रहा था !
और जब तुम मेरी बातों पर ध्यान दिये बगैर , मेरे लिये जींस की पैन्ट्स ले आयीं , तब मुझे पता चला कि ये रंग मेरी मर्दानियत पर प्रश्नवाचक चिन्ह नहीं लगाते।
क्या करूँ सखी …
शायद ये भी एक ' बायपास ' है, पुरुषप्रधान समाज की रक्षा का !

खैर …
तुम साथ में एक बेल्ट भी लायीं थीं।
जिसमें डबल हुक थे और उसके सिरे पर चमचमाता हुआ पीतल लगा था।
मुझे ये बेल्ट पहली ही नजर मैं भा गया था।
जाने कैसे ये उसी दिन से मेरी आत्मा से जुड़ गया।
शायद ऐसा भी हो कि ये जिस जीव की खाल से बना हो , उससे मेरा कभी कोई संबंध रहा हो !
पता नहीं …

पर इस बेल्ट के साथ मैं जवान हुआ , परिपक्व हुआ , आबाद हुआ।
वक़्त गुजरने पर दूसरे बेल्ट्स भी मेरे वॉर्डरोब में आये … पर ये सिर्फ़ ये रहा।
ऐसा बहुत कम ही हुआ कि मैंने जींस पहनी हो और कमर पर ये बेल्ट न बाँधा हो।
जाने कितने सावन ये बेल्ट मेरे साथ झूमा , भीगा।
जाने कितनी बार ये मेरे आँसुओं का साक्षी बना।
जाने कितनी गर्म साँसों के साथ इसके निर्जीव अस्तित्व में स्पंदन आया।
जाने कितनी बार मेरे साथ ये भी बेख़ुदी में भरमाया … !!
और देखो तो ....
आज ये कैसा निर्जीव पड़ा है।

याद है उस दिन गुलमोहर के नीचे भरी दोपहर में, जब मैने तुम्हें किताब देने के लिये बुलाया था
और दो सड़क-छाप गुण्डों ने तुम पर कोई फब्ती कसी थी , तब ये बेल्ट कितना काम आया था।
ऐसा लगा था कि इसका पीतल वाला सिरा हमारा रक्षा-कवच है।
उफ़ …
कितनी यादें हैं जो कुछ ना हो कर भी बहुत कुछ हैं।
कितनी बातें हैं जो अनकही होकर भी बस गूँजती रहतीं हैं।

सच बोलूँ …
यदि आज तुम साथ ना होतीं तो मैं टूट गया होता।
यदि तुम पास ना होतीं तो मैं बिखर गया होता।
बेल्ट तो बस एक बहाना है …
इसके साथ बिताया हर स्पंदन , हर प्रेरण सिर्फ़ और सिर्फ़ तुमसे ही तो जुड़ा है।
वो हर चीज़ जिसे मैंने पहले कभी संजीदगी से नहीं लिया !
वो हर चीज़ जो सिर्फ़ तुम्हारी निशानी है !!
…… टूटने के बाद भी सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी याद दिलाती है।
तुम हो तो हम हैं
नहीं तो दुनिया तो तब भी चलती रहेगी
जब हम दोनों ना होंगे।

तुम्हारा
देव

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