साल होने आया जब मेरी हड्डियों पर हथोड़ा और drill machine चले थे !
साल होने आया जब मेरे knee joint में screw लगा था !
एक अनुभव था वो भी …
" पीड़ा की पराकाष्ठा अक्सर प्रेम की पगडण्डी का निर्माण करती है। "
उभर आयी थी एक पगडण्डी, आकाश से होड़ लेते पहाड़ों के बीच ....
और उस छोर से क्षितिज निहार रहा था मुझे , कि मानो तुमने फैला दी हैं अपनी दोनों बाहें !!!
और पुकार रही हो ....
यक़ीन करो कानों के पास से गुज़रती हवा हौले से ' देव ' कह कर फुर्रर हो गयी थी।
…और मैं पल भर के लिए ब्रह्माण्ड में घुल कर अपना अस्तित्व भूल बैठा था।
" घुटनों की problem अक्सर strong-headed लोगों को होती है। "
संजीदगी से बोली थीं तुम और मैं मुस्कुरा कर रह गया था।
विश्वास करो strong-headed होने के मायने मुझे तब दुविधा में डाल रहे थे।
मैं अपनेआप में एक ' Guilt ' का अनुभव कर रहा था !
और जब मेरी नौकरी का दबाव उन हालत में भी मुझे तुम्हारे शहर लाया , तो प्रतिपल कुछ यूँ लगा कि मैं एक काँच के कमरे मैं बैठा हूँ और तुम मुझे हर कोण से देख रही हो।
यही कारण है कि तुम्हारे लाख चाहने पर भी मैं तुमसे नहीं मिला।
आता भी कैसे ?
मैं तो दौड़कर तुम्हारे पास आना चाहता था। मग़र वक़्त के हाथों ने बैसाखी थमा दी थी, पाँवों के वास्ते !!
चाहकर भी न कह सका कि बेक़रार मैं भी हूँ ! लेकिन बात कुछ और है …
इसीलिए बिना मिले चला आया तुम्हारी मनुहार के बावज़ूद।
और जब एक दिन मैंने अपने चोटिल घुटने को गुस्से में ' मुआ ' कह दिया , तब तुम कितनी नाराज़ हुयी थीं।
" तुम उसे ' मुआ ' बोलोगे तो वह भी तुम्हें 'मुआ ' ही बोलेगा।
बात किया करो उससे … ज़रा प्यार से ! " .... कहा था तुमने।
पता है तुम्हें ?
अब मैं अपने घुटने से रोज़ बातें करता हूँ।
वक़्त और मरहम ने मेरी चोट को ठीक कर दिया है, लेकिन अब तुमसे मिलने की कोई सूरत नहीं बन रही।
एक काम करो ना प्रिय …
तुम ही बुला लो मुझे !
मैं सच में आ जाऊँगा।
बिना किसी बैसाखी के …
अपने पैरों पर दौड़ते हुए।
तुम्हारा
देव
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