Wednesday, 2 July 2014

क्यों न ऐसा करें ?


सुना था कि प्यार परीक्षा लेता है
लेकिन अभी थोड़ी ही देर पहले पता चला कि प्यार सिर्फ उत्तर देता है।
उन अनुत्तरित प्रश्नों के, जो हमारे मन की अँधेरी कंदराओं में चमगादड़ से फड़फड़ाते रहते हैं।

… आज का पत्र भी कुछ और था !
तीखा , झन्नाटेदार और हल्का सा कसैला।
लेकिन तभी याद आया कि आज का दिन उसके लिए मुफीद नहीं।
क्योंकि बहुत ख़ास है ये ग्यारह अप्रैल।

तुम्हें तो याद भी नहीं होगा
पर मैं कैसे भुला दूँ भला ?
नीरव , निविड़, बीहड़ में आज ही के दिन तुमने थामा था मेरा हाथ !
जीवन और मृत्यु के संदेह से परे करने के लिए.…
फेसबुक की इस आभासी दुनिया में मेरे जीवंत प्रेम की प्रतीक तुम !!
तकनीक के बोझ तले दबे इस संसार को, अपने भावों से भिगोती तुम।
तुम्हारे प्रोफाइल पिक्चर्स ....
तुम्हारे स्टेटस ....
और तुम्हारी पोस्ट्स …।
जानती हो न, इनके क्या मायने हैं मेरे लिए ?

आज भी मैंने फेसबुक के मैसेज-बॉक्स में वो मैसेजेस संभाल रखे हैं...... जब हमने पहली बार बात की थी!
" कितने साधारण शब्द थे तुम्हारे … किन्तु कितने सारगर्भित ! "

मेरे मामूलीपन को कितनी नज़ाकत से तुमने महत्त्व प्रदान कर विशिष्ट बना दिया !
कितनी खास है न ये ज़िन्दगी …
कितने खास हैं हम - तुम !!
कि करोड़ों की भीड़ में भी अपना " SOUL-MATE " कुछ यूँ ढूँढ लेते हैं … मानो एयरपोर्ट पर नाम की तख़्ती हाथों में ले कर एक-दूसरे को रिसीव करने आये हैं।

तुम्हें तो तारीख़ों के उस पार रहना अच्छा लगता है …
लेकिन वक़्त ने मुझे इतिहास का विद्यार्थी बना दिया !

क्यों न ऐसा करें ?
सिर्फ़ आज के लिये तुम ग्यारह अप्रैल के इस पार चली आओ …
ताकि कल मेरा हाथ पकड़ कर मुझे तारीख़ों के पार ले जा सको !!!

तुम्हारा
देव

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