Wednesday, 2 July 2014

शायद यही है प्यार की चिरंतनता !


तुम्हारा ख़त पढ़ा।
बहुत कुछ कहना चाहता हूँ।
लेकिन भावों का बवंडर है कि उमड़ - घुमड़ कर जाने किस अँधेरी सुरंग में समा गया है।
घुप्प अँधेरी सुरंग .... मन के किसी कोने में !
जहाँ हाथ को हाथ नहीं सूझता।

वो लड़ रही है प्रिये ……
पता नहीं , ज़िन्दगी से या कि मौत से !
वो ,
जो अक्सर मेरे ख़त पढ़ कर रोती है।
बह जाते हैं मेरे शब्द टूट कर , उखड़ कर उसके आंसुओं के सैलाब में।
और फिर रीता हो जाता हूँ मैं ………सुनसान , शब्दहीन !

" देव तुम बहुत रुलाते हो। "
अभी कुछ ही दिन पहले बोली थी वो।
फिर कहने लगी ,
" उम्र की दुपहरी देख ली। अब तो साँझ दस्तक दे रही है। "

खो गयी खुद में कुछ देर , और फिर अचानक से फूट पड़ी।
" एक बात बताओ देव
क्या वो भी कभी याद करता होगा ?
एक अरसा गुज़र गया। "

फिर कुछ रुसवा हो कर बोली
" मुझे बार-बार उसकी याद क्यों दिलाते हो , अपने हर ख़त में रूलाते हो ?
जब सोलह की थी तो वो मिला था , अट्ठारह की हुई तो खो गया …
कह भी नहीं पाई उससे अपनी बात …
लो अब तो साँझ भी ढल आई जीवन की।
जाने कहाँ होगा वो ! "

फिर जाने क्या सोच कर खुश हो गई, और चहकते हुए कहने लगी …
" मैं फिर से डायरी लिखना चाहती हूँ
मैं फिर से उसको जीना चाहती हूँ
जहाँ भी होगा , उस तक मेरी बात पहुँच जाएगी। "

कुछ देर चुप रही , फिर मेरे मौन को सहलाते हुये धीरे से बोली …
" तुम सो जाओ , मुझे तो आदत है देर तक जागने की । "
मैं चला आया।

अगली सुबह उसके दिल पर भारी पड़ी …
बहुत भारी !!!
वो अब I.C.C.U. में है।

कल शाम उसका मैसेज आया।
" कहा था न देव ,
याद जीने नहीं देगी …
देख लिया न !
जिसे अँधेरे कोने में दफ़न कर दिया था , तुमने उस प्यार में जान क्यों डाल दी ? "

मैं स्तब्ध हूँ प्रिये ....
अंधकार है चारों ओर !
चारकोल सा चिपचिपा … घना , गाढ़ा अंधकार !
दिलासा के शब्द भी साथ छोड़ गए अब तो।
तुम्हें यूनिवर्स की शक्ति पर बडा भरोसा है न ?
एक बार अपने यूनिवर्स से कहो ना …
कि मेरी दोस्त ठीक हो जाए !
अब भी अधूरी है उसकी पाती ....
' पाती ' जो लिखना चाहती है वो अपने खोए हुए प्यार के नाम !

हाँ एक बात और …
वो ख़त जो तुम्हारे लिए थे ,
अब सिर्फ तुम्हारे नहीं रहे !
कई ' अजनबी ' दिल से जुड़ गए हैं उन ख़तों से !
शायद यही है प्यार की चिरंतनता !

तुम्हारा
देव

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