Wednesday, 2 July 2014

...वो हरी कोंपलों वाला सूखा ठूँठ !


पिछले कुछ दिन अच्छे नहीं गुज़रे।
क्या हुआ , क्यों हुआ ये सब जाने दो ।
पर हाँ ,
इन दिनों ये ज़रूर लगा कि पता भी नहीं चलता और भीतर का लहलहाता प्रेम एक दिन सूख जाता है । 
एक मधुर गीत, जाने कब गणित के प्रमेय में बदल जाता है।
ऐसा प्रमेय जिसे हल करते-करते उम्र पूरी हो जाये।
रोहिणी नक्षत्र , नौतपे का पहला दिन !
रविवार की लपट भरी दुपहरी में यूँ ही बे-सबब चला जा रहा था।
कुछ मजबूर साये थोड़ी-थोड़ी देर में चिलचिलाती धूप से उभर रहे थे।
कि तभी मेरी नज़र इस ठूँठ पर पड़ी !
... और फिर हट ना सकी।
मैं सम्मोहित सा इसके पास चला गया।
सोचने लगा कि कभी ये भी हरा-भरा, सायेदार पेड़ रहा होगा।
शायद इसके क़ातिलों के पास इस पर जानलेवा हमला करने की कोई वजह रही हो ,
लेकिन वे चाह कर भी इसे मार न सके !
एक क़तरा जीवन बाक़ी रह गया कहीं, जो फिर से फूट पड़ा ... जाने कैसे !

इस ठूँठ के और पास गया तो ये अचानक मुझसे बातें करने लगा।
बोला ....
“ बहुत सोचते हो देव तुम।
सोचो मत ... जी लो !!
प्यार ना तो प्यास है, ना ही तृप्ति !!!
प्यार मिलन और विरह भी नहीं है।
प्यार सिर्फ प्यार है।
जिसके अधूरेपन में भी पूर्णता है,
और जो पूर्ण होकर भी अधूरा है।
मैं जब हरा-भरा पेड़ था तो प्यार देता था।
जब कट कर सूख गया तो प्यार मिलने लगा।
इन हरी कोमल पत्तियों को देखो ...
मेरे आस-पास की मिट्टी और पानी छिन गया पर इनने मेरा साथ नहीं छोड़ा।
जैसे ही मेरा अस्तित्व मिटने लगा ,
इन कोंपलों ने आकार मुझमें जीवन फूँक दिया ।
मैं अब पड़ोस के पेड़ों जैसा हरा-भरा नहीं ...
ना ही जो मेरे तले कोई छाँह बची है अब ।
फिर भी देखो तो ,
इन नन्ही सुकोमल पत्तियों ने मुझको कितने प्यार से स्वीकार लिया !!! “

मैं कुछ क्षणों के लिए चकित रह गया।
कि कहीं ठूँठ भी इंसान से बातें कर सकता है ?
और बातें भी ऐसी कि जिन्हें सिर्फ महसूसा जा सके ,
समझने जाओ तो कोई सिरा ही न मिले।
मैंने उस ठूँठ से कुछ और बात करनी चाही, लेकिन वो चुप हो गया ।
एकदम चुप ...

इसी बीच दूर बैठकर सुस्ता रहा एक राहगीर मुझे अजीब नज़रों से देखने लगा ,
तुम तो जानती हो
मेरी भावनाओं के साथ अब एक स्थायी हिचक जुड़ गयी है।
इसीलिए मैं चाहकर भी उस ठूँठ से कोई आग्रह या मनुहार न कर सका।
बस उसका एक फ़ोटो लिया और चला आया।
लेकिन उसकी बातें मुझमें अब तक गूंज रही हैं।
मैं तृप्ति और प्यास के उस अनोखे रिश्ते को जानने की कोशिश कर रहा हूँ ,
जो वो मुझे बता रहा था ...वो हरी कोंपलों वाला सूखा ठूँठ !

सुनो ना
यदि तुम्हें उसकी बातों के अर्थ समझ आ गए हों, तो मुझे भी समझा दो !
बहुत बैचेन हो गया हूँ ।
इंतज़ार में ...

तुम्हारा
देव

No comments:

Post a Comment