Tuesday, 2 January 2018

जाने कैसी आदतें अपने साथ लेकर आया हूँ




सीलन भरी दीवारें 
दीमक लगी चौखट
टूटी हुई बंदनवार 
और एक झूलता दरवाज़ा;
ये ही सब संकेत हैं 
मेरे मन का हाल बताने को !
“जितना सुलझाता हूँ उतनी उलझती जाती है,
ज़िंदगी मेरे आगे सवाल बन जाती है।”

मैं वो कभी हो ही नहीं पाया 
जो मुझे होना था। 
और मेरे होने के लिए 
जिस एक चीज़ की दरकार थी 
वो सिर्फ़ सुकून था !

सुकून मिलकर भी नहीं मिला कभी !
छोटी-छोटी बातें 
बड़े-बड़े व्यवधान का रूप लेकर 
हर बार... 
मेरी राहों का रोड़ा बनती चली गईं। 

सबकुछ मिल जाता है मुझे 
बस सुकून की ‘वो’ छांह नहीं मिलती !
सर्द रातों में कभी-कभी नींद नहीं आती
और आ भी जाये 
तो ऐसे सपने आते हैं 
कि उठकर बैठ जाता हूँ। 
ये सोचकर सिहरने लगता हूँ 
कि कहीं नींद आ गयी 
तो मेरा दुःस्वप्न 
फिर वहीं से न शुरू हो जाये 
जहाँ अधूरा छूटा था। 
“बदसलूकी के ये सपने और पूरी रात बाक़ी,
पूर्णता के मोड़ पर ही लग रही हर बात बाक़ी।”

जाने कैसी आदतें अपने साथ लेकर आया हूँ,
कि एक मर्ज़ का इलाज़ खोजने में 
दूसरे मर्ज़ का सहारा ले लेता हूँ। 
और ये सब इतना अप्रत्यक्ष होता है 
कि समझकर भी नहीं समझ पाता !

हमारे अलावा भी 
एक शख़्स रहता है ना 
.... हमारे भीतर !
जिससे कि हम 
अपनी वो बातें साझा किया करते हैं 
जिन्हें हम कभी दुनिया के सामने नहीं लाते। 
मेरे भीतर का वो शख़्स ‘तुम’ हो !
चाहे मैं तुमको ख़त लिखूँ या न लिखूँ, 
चाहे मैं तुमसे बात करूँ या न करूँ,
हक़ीक़त तो ये है 
कि हर-पल 
मैं तुमसे ख़ुद को साझा करता रहता हूँ। 

हाँ,
एक बात और....
मुझे पता है 
कि कुछ बातें हमेशा अनकही रह जायेंगी
कुछ खुशियाँ कभी नहीं मिल पाएँगी 
कुछ मुलाकातें अधूरी ही छूट जाएँगी
मगर तब भी ....
उनका ख़याल, उनके पूर्ण होने की चाहत 
हमें ज़िंदा रखेगी 
आख़िरी साँस तक !

एक गुज़ारिश है तुमसे 
मेरी बातों के मतलब 
सिर्फ़ मेरे शब्दों में मत ढूँढना;
मेरी तस्वीर को 
अपनी उँगली से छूकर 
तुम्हारे स्पंदन में मुझको जीना !
शायद तब ....
तुम मुझको समझ सको !!

तुम्हारा 
देव




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