Tuesday 2 January 2018

मैं तो पंछी बन गया हूँ प्यारी !




एक अदृश्य तार रहता है
... हम सब में !!
जिसे कोई अनजाना अजनबी आकर
झनझना देता है।
और फिर भीतर ही भीतर
आनंद का सोता बहने लगता है।
किसी जीते जागते स्वार्गिक सुख जैसा !
कितना निर्दोष होता है ना
ये प्यार भी !!!
उस दिन जब तुम्हारे मोबाइल पर
बार-बार नेटवर्क आ और जा रहा था।
तब तुम थोड़ी बेकल हो गयी थीं 
मगर मैं निश्चिंत था।
"इंतज़ार करना आता है मुझको।"
मैंने तो बस
इतना भर कहा था।
मगर उसके बाद तुमने जो कहा,
उसने मुझे अंदर तक भिगो दिया।
"जानती हूँ देव,
कुछ लोग होते हैं ठहरे हुए से....
जो किसी भी हद तक इंतज़ार कर पाते हैं।
बिना किसी आशा या अपेक्षा के
बस...
वैसे ही हो तुम !"
इधर तुमने बात ख़त्म की
और उधर मैं रो पड़ा था
फूट-फूट कर !
तब,
तुमने अपनी दो उँगलियों से छुआ था
.... मेरी कलाई को !
और हौले से बोली थीं
बह जाने दो...
अच्छा लगेगा।
एक बात कहूँ
हर बार जब तुम मुझे पुकारती हो
तब दरअसल ,
तुम्हारी आवाज़ मेरे कानों में नहीं घुलती
वरन,
तुम गुज़र जाती हो, मुझसे होकर...
बहुत भीतर कहीं
आत्मा से सटकर !
अक्सर ये होता है मेरे साथ
कि तुम्हारे जाने के बाद 
तुम्हारे निशान ढूँढता हूँ,
उन पर अपनी उँगलियाँ फेर कर
तुम्हारे स्पंदन को जीता हूँ।
वो मील का पत्थर...
जिस पर तुम,
हर सुबह मॉर्निंग वॉक के समय सुस्ताती हो।
चुपके से जाकर उस पर बैठ जाना
मेरा सबसे प्यारा शग़ल है।
पता है क्या... !
तुम मुझे ट्रांस में लिये जाती हो
और वहाँ से इतनी विराट लगती हो
कि मेरी आँखें चुँधिया जाती हैं।
विस्तारित तुम...
इस क्षितिज से उस फ़लक तक !
अचानक मैं आँखें बंद कर
अपने अदृश्य पंख फैला कर तैरने लगता हूँ...
कभी दायें तो कभी बाँये
मस्ती के हिचकौले लेते हुए !!
उफ़्फ़....
कैसे समझाऊँ तुम्हें
तुम्हारी ही बात मैं !!
सुनो...
उस दिन मेरी कलाई पर
जहाँ तुमने अपनी उंगली रखी थी ना
आज वहाँ मैंने,
अपने होंठ रख दिये।
और जी भर कर पी .... ख़ुशबू तुम्हारी।
यक़ीन करोगी
अभी देखा तो पता चला
कि मेरी कलाई पर उस जगह एक तिल भी है
छोटा सा !!!
कमाल है
तुम्हारे एहसासों में इतना मशगूल रहता हूँ
कि ख़ुद पर भी अब 
ग़ौर नहीं कर पाता।
लेकिन मुझे इसका
रत्तीभर गिला नहीं...
मैं तो पंछी बन गया हूँ प्यारी !
यूँ ही डरा करता था
अब तक उड़ने से...
सच !!!
तुम्हारा
देव



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