जैसे कि मैं,
तुम्हें ख़त लिखता हूँ ना !
बिलकुल वैसे ही,
वो कविता लिखा करता था।
रंगीन आँखों वाली
उस लड़की के वास्ते।
हर बार कविता लिख कर
पुरानी किताब के पन्नों के बीच
छिपा दिया करता।
और फिर कभी उन्हें
दोबारा नहीं पढ़ता।
वो,
उस लड़की के लिए लिखता था
जो हर सुबह
डलिया में गुलाब सहेज कर
मौत से लड़ते मरीज़ों के पास जाती।
फिर टीsss, टी ss करती
ICU की बीप के बीच ....
इस बिस्तर से उस बिस्तर।
किसी के सिरहाने गुलाब रख देती,
तो किसी खाली बिस्तर को देख
वापस लौट आती !
बिस्तर.....
जो रात के किसी पहर
रीते हो जाते थे अक्सर!
कभी उसके साथी
हाइजीन का हवाला देकर
उसे रोक दिया करते।
तो कभी वो
खुशी को ही जीवन बताकर
उनकी बात टाल दिया करती।
"किसने बना दिया तुमको डॉक्टर ?
तुम्हे तो कवि होना चाहिए था।"
जब कोई ये कहता
तो वो हँस देती।
चाहती वो भी थी
........कविता लिखना।
चाहने से ही मगर
सब हो नहीं जाता।
इस सबके बीच
एक दिन
उसके हाथ वो कागज़ लग गये।
"अरे वाह......
कितना अच्छा लिखते हो
इनमें से कुछ कवितायेँ
मैं रख लूँ?"
"सुनो...
ये सारे कागज़ तुम रख लो !"
कवि ने अपनी प्रेरणा के समक्ष
अपनी ही कृतियाँ विसर्जित कर दीं।
कवितायेँ पढ़ कर वो
बावरी हो गई
"जो भी तुम लिखते हो !
कैसे लिखते हो ?
कमाल लिखते हो !"
नज़रें झुकाये वो, मुस्कुरा उठा।
चंद दिन ही बीते थे
डलिया में फूल लिए
वो दौड़ी आयी।
और बोली...
"आज मैंने तुम्हारी एक कविता पढ़ी
बिलकुल नयी!
अनदेखी, अनजानी
लेकिन हू ब हू मेरे जैसी !
जानते हो
तुमको पढ़ने के लिए
अक्सर रुक जाती हूँ।
एकांत में अपनी गाड़ी खड़ी करके मैं
तुमको पढ़ती हूँ
ऐसा कैसे लिखते हो ?"
लडके ने हिम्मत कर
उसकी आँखों में देखा
और धीरे से बोला ...
"गुमां हो जायेगा
ख़ुद पर मुझको,
तारीफ़ ना किया करो
मेरी इतनी।"
यकायक लड़की के हाव-भाव बदल गये।
अजीब सी निगाहों से देखकर बोली,
"I am very spontaneous....
Beware from me !!"
इतना कहकर
'वो' चली गयी।
और 'ये' जैसे रेत की भीत सा, भरभरा गया !
फूलों की डलिया में
कुछ फूल बाक़ी थे,
रात बीतने पर भी
जो सूख नहीं पाये।
हाँ मगर इस बीच
एक रात की दूरी
लड़के को मीठा सा रोग दे गई।
डॉक्टर बोला......
"डायस्टोलिक प्रेशर बढ़ना
कई बीमारियों को न्योता देना है।"
अगली सुबह टोकरी में
फूलों के साथ
हाई ब्लड प्रेशर की गोलियों का पत्ता
मुँह चिढ़ा रहा था।
सुनो........
ये ख़त मैं तुमको इसलिए लिख रहा हूँ
क्योंकि एक प्रश्न ने
मेरी नींद ओ करार छीन लिए हैं।
कि जिसके पास इलाज होता है..
अक्सर वो ही हमें
मर्ज़ क्यों दे जाता है।
बोलो?
तुम्हारा
देव
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