छुट्टी की उस सुबह
जब मैं, तुमको वॉइस मैसेज
कर रहा था
तब बीच में एक आवाज़ गूंजी थी।
“पेप्पर,रद्दी, अटालै वाला !!!”
संवाद के बीच उभरती
उस अनजान, अजनबी आवाज़ के
जैसी ही तो है
हमारी ये ज़िंदगी भी।
एक बहुत शांत और निर्दोष पल
जो अचानक
हम में से होकर गुज़र जाता है
फिर एक दिन....
हम उस पल को रिवाइंड करते हैं, मन ही मन।
और वो पल
हमारी ज़िंदगी की
एक हसीन याद बनकर उभर आता है।
सच-सच कहूँ...
मुझे नहीं पता,
कि मोह क्या है !
बस इतना जानता हूँ
कि तुमने मुझसे एक वादा लिया है;
“मोह से दूर रहने का वादा !”
किसी अलसाई सुबह
उनींदेपन को ओढ़े हुये
नाक और आँख तकिये में धँसाये
जब औंधे-मुँह लेटा रहता हूँ।
जब झुटपुटे प्रकाश को देखकर,
एक तसल्ली मिलती है
कि कुछ देर और सो सकता हूँ।
ऐसे में
ख़यालों ही ख़यालों में
जाने कहाँ से आकर
तुम मुझ पर तारी हो जाती हो।
उस पल को क्या कह कर पुकारूँ
क्या ये भी मोह है !
....बोलो ?
समझ नहीं पाता कभी-कभी
तुम तो फ़िज़िक्स की दीवानी हो ना
ज़रा ये तो बताओ
कि न्यूटन के गति के नियमों से पहले भी तो
जीवन चल रहा था !!!
माना कि उसके बाद,
नए-नए आविष्कार होने लगे
मगर प्रेम तो वही रहा !!
कैसे मान लूँ
कि प्रेम का भाव हार्मोन्स की देन है ?
हाँ,
प्रेम में होकर
कुछ अच्छे हार्मोन्स ज़रूर निकलते होंगे।
पगलिया मेरी
कब समझोगी
कि मेरा E = mc2
तो बस तुम ही हो !!
तुम्हारी तस्वीर को एकटक देखते रहना
देखते-देखते रुलाई फूट पड़ना
और ठीक उसी समय
तुम्हारा मैसेज आ जाना
क्या ये संयोग है ?
और जो ऐसा है
तो मैं एक नया विज्ञान गढ़ना चाहता हूँ
संयोग का विज्ञान !
कल किसी ने पूछा मुझसे
“देव,
कविता लिखने के अलावा
और क्या करते हो तुम !”
मैं कुछ नहीं बोला
मगर सोच में पड़ गया
कि मैं...
कविता कहाँ लिखता हूँ ?
मैं तो बस प्रेम करता हूँ !
मैंने तो बस प्रेम किया है !
इश्क़ जो कुछ करवाता है,
सिर्फ़ वही तो करता हूँ मैं !!
“चाहत के विरूद्ध जाओ
बड़ा सुख मिलेगा”
यही बोली थीं ना तुम....
लो,
तुम्हारी सारी तस्वीरें डिलीट कर दीं
सारे सहेजे हुये मैसेजेस मिटा डाले
आँसू ढलके
तो चेहरे पर पानी डाल कर छिपा लिये।
सुनो...
मैं फिर से कोरा हो गया हूँ
किसी स्लेट, किसी कागज़ की मानिंद
!
अब एक नयी इबारत लिख दो ना
मेरे मन पर
अपने हाथों से
हाँ,
इतना करना,
कहीं से अमिट स्याही ले आना
नहीं चाहता
कि तुम्हारा लिखा
कभी कोई मिटा सके
मुझ पर से !!
तुम्हारा
देव
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