प्रिय देव ,
ये पहली बार है जब मैं तुम्हें इतनी जल्दी ख़त लिख रही
हूँ ।
हमेशा अपना सोचा हो ये ज़रूरी नहीं
और जो सोच रखा हो वही सही हो, ऐसा भी तो नहीं !
इस धनतेरस पर तुमसे मिलने आई तो बड़ा अच्छा लगा।
ख़ुद को खाली कर रहे थे तुम ....
बरसों से जोड़ा हुआ तिनका-तिनका एक ही बार में ख़ुद से
अलग कर रहे थे ।
थोड़े दुखी थे !!!
होता है ,
हमारी सहेजी हुयी चीज़ें अक्सर हमसे जुड़ जाती हैं बहुत
गहरी ।
लेकिन कभी न कभी तो उनसे अलग होना ही होता है ।
तुम ही कहो ...
नवजात भी तो नाभिनाल से अलग होकर ही जीवन पाता है ।
हर फल के पकने का एक समय है
फिर उसे डाल से अलग होना ही पड़ता है ।
इन बीस साल पुराने कागज़ों से इतना लगाव रखोगे,
तो किसी ज़रूरतमन्द को प्यार कैसे दोगे ?
साझा करने की भी तो एक सीमा होती है देव !
इसलिए हर बार थोड़ा-थोड़ा खाली हो जाया करो ......
प्यार और-और बढ़ता जाएगा, भरता जाएगा
भीतर.....
कहीं बहुत भीतर ।
फिर एक दिन तुम सिर्फ प्यार रह जाओगे !
सारे दुनियावी, सामाजिक टॉक्सिक्स
निकल जाएंगे ।
देखो न कितना मज़ेदार है ये सब,
कि एक बच्चा अपने बचपन में अक्सर बड़ा होने का ख़्वाब
देखता रहता है।
बड़ी व्यग्रता से ....हर हफ़्ते, हर महीने !
कभी आईने में, तो कभी लोगों के सामने
दिखाता, जताता रहता है
कि वो अब बच्चा नहीं।
और जब सच में बड़ा हो जाता है, तो बचपन की तस्वीरें देख-देख रोता है ।
...फिर से बच्चा बनने के लिए !
यही है जीवन .....
जानते सब हैं, मानते नहीं बस !
और ये क्या लगा रखा है ?
तुम्हारे घुटने के दर्द को हौवा न बनाओ देव।
दर्द होता ही सहने के लिए है।
हाँ ये ध्यान रहे कि लापरवाही से कोई बनती बात न बिगड़े।
लेकिन बार-बार बैसाखी पर हाथ फेरना,
फिर सूनी आँखों से आसमान देखना ...
क्या है ये सब !
ठीक हो जाओगे विश्वास रखो ।
याद है वो बच्चा ?
जो तुम्हारे घर से दायीं गली में रहता है ।
बचपन में पतंगबाज़ी करते हुये बिजली के हाई-वोल्टेज तार
ने उसका सीधा हाथ ले लिया था ।
तब भी वो एक हाथ को लहराते हुये दौड़ता-भागता रहता था
।
वो बच्चा अब बड़ा हो गया है ।
आज मैंने उसे कार चलाते देखा ....
दोनों हाथों से !!!
कृत्रिम अंगों में भी जीवन आ जाता है देव .....
अगर मन में वैसा भाव हो ।
एक बात मानोगे .....
इस बैसाखी को भी अटाले वाले को दे आओ ।
तुम्हें अब इसकी ज़रूरत नहीं ।
और हाँ ,
वो नीली शर्ट जो मैं तुम्हारे जन्म-दिन पर लायी थी,
तुम पर बड़ी फब रही है ।
एक काला टीका ज़रूर लगा लेना ।
तुम्हारी
मैं !
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