Thursday 27 April 2017

असाधारण से साधारण तक की यात्रा !





प्यारे देव,
कुछ नहीं पूछूंगी तुमसे
पूछने से भी कहीं उत्तर मिले हैं आजतक !
भाव और अनुभूतियों का कद घट जाता है
बार-बार यदि कोई प्रश्न पूछा जाता है।
और फिर
मैं और तुम तो एक यात्रा पर निकले हैं।
असाधारण से साधारण तक की यात्रा !
प्रेम की यात्रा...
यात्रा के दौरान
कभी-कभी किसी सुरंग से भी निकलते हैं न
साथ-साथ चलते हैं
मगर दिखता कुछ नहीं तब,
हाथ को हाथ नहीं सूझता !
पर एहसास बना रहता है
साथ-साथ होने का !
बस...
वैसी ही किसी सुरंग से
बाहर निकले हो तुम अभी-अभी।

पीहू मेरे,
पता है
तुम्हारी कौन सी चीज़ मुझे सबसे ज़्यादा लुभाती है ?
That you are Seeker !”
ना जिज्ञासु,
ना ही तलबगार;
कोई और शब्द नहीं है मेरे पास
सिवा इसके कि तुम एक Seeker हो !
जिन निगाहों से तुम देखते हो ना
उसके बाद मुझे आईने में सँवरने की भी ज़रूरत नहीं रहती !
और क्या कहूँ ...
इतना काफ़ी नहीं !

उस दिन
दिल्ली के उन दिनों की बातें करने के बाद
जब मैं तुमसे विदा हुई,
तो देर रात तक नींद को तलाशती रही।
थकी हुयी भी थी
बेचैन भी नहीं थी,
मगर नींद नहीं आ रही थी।
रात तीन बजकर सात मिनिट तक तो जाग रही थी।
फिर अचानक से नींद लग गयी।
एक सपना देखा मैंने उस रात
एक ऑटो,
जिसमें आमने-सामने की सीट पर बैठे मैं और तुम।
चुपचाप एक-दूसरे को देखते हुए
बीच-बीच में रुकता-चलता ऑटो।
इस दौरान,
कभी मेरा हाथ, तुम्हारे हाथों से छू जाता
तो कभी अलग हो जाता।
और फिर अचानक
मैंने तुम्हारे हाथों को थाम लिया
ज्यों ही हाथ थामा, सपना भी टूट गया।
बात ये है देव,
कि उसके अगले दिन जब तुमसे मिली
तो तुम्हारे स्पर्श में
ठीक वही अनुभूति थी
सपने वाली ..... !
सच कहते हो तुम ... “ Everything is connected !

तुम फिर से दिल्ली गये थे ना !
मगर मैं बहुत दूर हूँ ,
....मेपल की पत्तियों वाले देश में !
यहाँ अब भी सर्दी है।
थोड़ी-थोड़ी बरफ भी।
रोज़ सुबह मेरे अपार्टमेंट की मुंडेर पर
कबूतर का एक जोड़ा आ जाता है।  
एक कॉफी कलर, तो एक स्लेटी कलर वाला
बड़ी कोशिश की
कि दोनों की जोड़े से तस्वीर ले लूँ।  
लेकिन स्लेटी कलर वाला कबूतर
हर बार कॉफी कलर वाले को ढक लेता है।
ऐसा लगता है
कि वो एक नर है
जो अपनी प्रेयसी को लेकर बहुत Possessive है
बिलकुल तुम्हारी तरह !!

बुद्धू मेरे,
सनडे को वीडियो-कॉल करूँगी
अपना ख़याल रखना।

तुम्हारी
मैं !








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