अंतराल उभर आते हैं
रह-रह कर जीवन में !
और हर कोई
अपनी सुविधा से
उस अंतराल का फायदा उठा लेना चाहता है।
कभी अजनबीयत के अंतराल,
कभी अपमान से उपजे अंतराल;
तो कभी अबोले शब्दों की कोख में पलते अंतराल !
दशकों पहले
एक टेली-सीरियल आता था
शायद दूरदर्शन पर ....
उसका टाइटल सॉन्ग मुझमें अजीब से भाव जगा देता था
“भूखे को रोटी का
बेकार को रोज़ी का
लुटेरे को मौक़े का
इंतज़ार है।”
ज़ेहन में ये पंक्तियाँ
आज भी कभी-कभी ऐसी फँसती हैं
कि लाख कुरेदने पर भी निकल नहीं पाती !
“मैंने ना तो कभी तुम्हें ठुकराया
और ना ही कभी अपनाया।”
कितनी आसानी से बोल दी
उस दिन तुमने ये बात ... !
और इसकी वजह ?
.... कुछ भी नहीं !
उसके बाद मैं चुप हुआ
तो फिर एक लंबा अंतराल उभर आया
ऐसा अंतराल.....
जो टापू में तब्दील होकर
हमको हम से ही जुदा कर दे।
ये सच है
कि अब मैं उतना उत्साहित नहीं रह पाता
जितना कि तब रहा करता था।
ये भी सही है
कि किसी दूसरे से लड़ते-लड़ते
ख़ुद से ही लड़ने लग जाता हूँ।
कभी तो दुनियावी तनाव भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाते
और कभी
किसी बे-सिर-पैर की बात पर
ब्लड-प्रेशर एकसौ-अस्सी तक पहुँच जाता है।
उस शाम
मनुज मुझे बस रेल्वे-स्टेशन के बाहर तक छोड़ने आया
था।
फिर उसे जाने क्या सूझी
प्लैटफ़ॉर्म टिकिट ले लिया
और रेल्वे-प्लैटफ़ॉर्म पर डिनर करने की ज़िद करने
लगा।
ट्रेन में अभी वक़्त था
मैं भी थोड़ा उत्साहित हो गया।
सो बस...
वहीं एक बूढ़े भिक्खु की बगल में बैठकर
बड़े मज़े से आचार,पराठे और
सूखी सब्ज़ी खाई
इतने में ट्रेन आ गयी
और मैं उसमें बैठ गया।
मगर ये क्या....
ठीक उसी पल तुम्हारा WhtasApp मैसेज आया
जिसमें कुछ देर पहले की
मेरी खाना खाते हुये तस्वीर थी।
उधर मनुज हाथ हिलाकर विदा कर रहा था
इधर अचरज से भरा मैं
ट्रेन से नीचे उतर
बदहवास सा तुमको ढूँढने लगा।
लेकिन मुझे वहाँ न तुम दिखीं....
ना तुम जैसी कोई लड़की !
फिर ताबड़तोड़ मैंने
हर जगह की तस्वीरें खींचना शुरू कर दी
इस आस में,
कि किसी तस्वीर में तुम दिख जाओ !
जब गाड़ी चली
तो कूपे में बैठकर
हर तस्वीर को एनलार्ज कर तुमको खोजा
मगर तुम कहीं नहीं थीं।
प्रीता मेरी....
मुझसे व्यवहारिक होने को मत कहा करो।
जानती तो हो
जो बदलाव मैं तब नहीं ला पाया
वो अब कैसे लाऊं ?
पता है मुझको
कि साथ-साथ चलती दो पटरियाँ कभी नहीं मिलतीं।
मगर ये भी सच है
कि उनके बगैर
हर इंजन, हर डब्बा अधूरा
है।
एक बात,
आज खुल कर कह देना चाहता हूँ
प्यार शब्द अधूरा है
...तुम्हारे बगैर !!
ठुकराने और अपनाने से परे हैं हम-तुम !
मुझसे अब कभी न कहना
कि ‘प्रेक्टिकल बनो’ !
ना तो मैं बन सकता हूँ
ना ही जो बनना चाहता हूँ।
समझ गयीं न !
तुम्हारा
देव
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