Thursday 25 May 2017

पाँच शब्दों वाला एक ख़त







कुछ दिनों से
एक ख़याल सोने नहीं दे रहा।
कि तस्वीर के लिए फ़्रेम बना करती है,
या फ़्रेम को इंतज़ार रहता है
हर बार किसी नयी तस्वीर का !!

ख़यालों में ही
मैं एक दुकान पर जा पहुँचता हूँ,
जहां सिर्फ ढेर सारी खाली फ़्रेम्स रखी हुई हैं।
उन्हें देखकर
मुझे कोई ख़ुशी नहीं होती।
बल्कि मैं आशंकित हो उठता हूँ।
ऐसा प्रतीत होता है
मानो फ़्रेम साँस लिया करती है
किसी तस्वीर के इंतज़ार में।
अचानक ख़यालों में ही
एक और ख़याल पैदा हो जाता है।
कि काश,
इन फ़्रेमों में
सिर्फ प्रकृति के चित्र ही लगें
कभी कोई इंसानी तस्वीर न लगने पाये।

पता नहीं होता ना
कि कब, किस पल
कोई हँसते-हँसते अपनी तसवीर खिंचवाए
और कब उस तस्वीर पर
फूलों का एक हार पहना दिया जाये !
फिर धीरे-धीरे उस हार के फूल सूखने लगें,
और उसकी जगह कोई नकली फूलों की माला
या चन्दन की चिप्पियों वाली
आधी साफ, आधी धूल से सनी माला,
आकर झूलने लग जाये।

सच कहती हो
मैं हँसता हूँ पर नहीं हँसता !
शायद मेरे चेहरे की
हँसने वाली पेशियाँ मुझसे बगावत कर बैठी हैं।

कोई एक पखवाड़ा पहले की बात है
ला-इलाज़ बीमारी को चुनौती देती वो औरत
अपने घर से अकेली निकली
फिर मंहगी कार और शोफर को चकमा देकर
गोरखपुर जाने वाली बस में बैठ गयी।
रातभर चलती रही
सुबह पहाड़ों की तलहटी में बने ढाबे पर बैठ
चाय की चुसकियाँ लेते हुये
मुझे मैसेज किया।
“देव,
अदरख वाली चाय पी रही हूँ
तुम्हें तो कॉफी पसंद है ना !
मगर मुझे चाय भाती है
वो भी ठेठ देसी
जिसमें ढेर सारा अदरख कूटा गया हो
और खूब काढ़ी गयी हो
.... ऐसी चाय !”

मैं उसकी बातें सोचता रहा
कहना चाहता था
कि अदरख नहीं अदरक बोलो
ये भी मन हुआ
कि उसे बताऊँ
मुझे भी देसी चाय पसंद है;
मगर चुप रह गया।

शाम होते न होते
फिर उसका मैसेज आ गया
“देव,
मैं घर आ गयी।
छोटे से पहाड़ की तलहटी में
कुर्सी पर बैठ
आराम से घुटने मोड़ कर
पूरे दो कप चाय पी लेने के बाद
कुछ और करने का मन ही नहीं हुआ !”

मुनिया मेरी....
जाने क्यों आज
मुझे वे दो प्रेमी याद आ गए
जो दूर-दूर रहकर भी
ख़यालों में मिलते थे। 
लड़की फोन किया करती,
और लड़का ख़त लिखा करता था
एक दिन लड़की ने फोन कर बोला
“सुनो...
बारिश !”

“कहाँ ?
लड़के ने पूछा।

“इधर
मेरे यहाँ।”
इतना कहकर लड़की ने फोन रख दिया।

लड़का बाहर भागा
जाकर देखा
तो वहाँ सिर्फ मई की दुपहरी
और लू की लपटें थीं।
वो वहीं थिर गया।
अचानक जाने कहाँ से
उसके नथुनों में
मिट्टी की महक आ बसी।
आँखों को मीचे
वो थोड़ी देर खड़ा रहा
फिर भीतर चला आया
एक पोस्ट-कार्ड लिया
और उस पर
पाँच शब्दों वाला एक ख़त लिख दिया...
“सोंधी महक,
तेरे एहसास की।”
फिर उस ख़त को पोस्ट करने चल पड़ा।
.............

तुम्हारा

देव


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