Thursday, 1 June 2017

वे मुट्ठीभर दिन !!







एक के बाद दूसरी…. विचारों की जाने कितनी श्रृंखलाएँ….
और उनको संभाले हुये
किसी जगलर की तरह हमारा मन !

कोई एक विचार,
किसी ख़ास पल में
हमारे जीने का सहारा बन जाता है।
तो वही विचार,
किसी अजनबी पल में
चैन-ओ-क़रार छीन कर ले जाता है।
विचारों के अनगिन बवंडर
जब आकर घेरने लगते हैं
तो उनसे पीछा छुड़ाने के लिए
मैं तुम्हारी कल्पना के पहलू में आ सिमटता हूँ।  
....और बस तभी
एक बड़ी पुरानी साथी, मेरी अज़ीज़  ग़ज़ल
हौले से सरक कर
बिलकुल पास चली आती है।

“फिर मेरा ज़िक्र आ गया होगा,
वो बरफ सी पिघल रही होगी।
कल का सपना बड़ा सुहाना था,
ये उदासी न कल रही होगी।
शहर की भीड़-भाड़ से बचकर,
तू गली से निकल रही होगी।
तेरे गहनों सी खनखनाती थी,
बाजरे की फसल रही होगी।
जिन हवाओं ने तुझको दुलराया
उनमें मेरी गज़ल रही होगी।”
काश,
बस एक बार कैसे भी
समय का पहिया उलटा घूमकर,
मुझे दुष्यंत कुमार के पास ले चले
तो मैं उनसे पूछ लूँ
कि
“ओ मेरे हमनवा शायर
मेरी दास्तान हूबहू
तुम्हें पहले से कैसे पता थी.....
जो सबकुछ दशकों पहले लिखकर
मेरे आम से इश्क़ को
अपनी ग़ज़लों से इतना ख़ास बना दिया।”

आह....
तुम्हारे साथ गुज़ारे हुये
वे मुट्ठीभर दिन !!
जब हर सुबह
तुम मुझे जगाने आया करती थीं
गुनगुना पानी और चुटकी भर दालचीनी के साथ....!
वो दरवाज़े पर हल्की आहट
वो दुर्लभ भीना-भीना वातावरण
और तेज़ धड़कती मेरे दिल की धड़कन !
उफ़...उफ़....उफ़.....
उन्हीं दिनों में से एक दिन
जब मेरा हाथ तुम्हारी उँगलियों को छू गया
तो सूरज की मद्धम रोशनी में
एक इतना सूक्ष्म एहसास फड़फड़ाया
कि मैंने अपनी आँखें मूँद ली थीं।
उसी दिन दोपहर में
जब तुम अपनी बड़ी बहन के साथ बैठी चुहल कर रही थीं
तब मैंने कितनी कोशिशें की
कि तुम्हारी उँगलियों की बस एक तस्वीर ले लूँ
मगर नहीं ले पाया
और तुमने...
हँसते-हँसते कनखियों से मुझे देखकर यों निगाह फेर ली  
कि जैसे मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं !!
उस दिन के बाद से ...
तुमने इस बात का विशेष ख़याल रखा
कि कहीं मेरा हाथ
तुम्हारे हाथों को न छू जाये।

और वो दिन भी अच्छी तरह याद है,
जिस दिन सब वापस जाने वाले थे।
तब अचानक से मेरे पास आकर
तुमने मेरा मोबाईल छीना
और बड़े शांत भाव से
अपने हाथों की आठ-दस तस्वीरें खींचकर
मोबाईल मुझे थमा दिया...
मैं तो अभी मंत्र-मुग्ध सा
उन तस्वीरों को देख ही रहा था
कि तुमने बिलकुल पास आकर कहा
Don’t make me feel so special…..  
कोई भी लड़की मैनिक्यूअर-पेडिक्यूअर कराएगी,
तो हाथ-पैर सुंदर ही दिखेंगे !”
और फिर जाने कब तुम चली गईं
मैं बड़ी देर तक
यूँ ही सुन्न सा खड़ा रहा।

सुना किसी से मैंने बाद में
कि तुमने दीक्षा ले ली
और अपना नाम भी बदल लिया
अब लोग तुमको, देव-पूजा के नाम से जानते हैं।
मैं खुश हूँ इस बात से
कि जब लोग तुम्हें पुकारते हैं
तब हर बार ...
मेरा नाम भी,
तुम्हारे नाम के साथ आता है।

सच-सच कहूँ ....
अब मुझे ख़ुद से कोई गिला नहीं !!

तुम्हारा
देव


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