झूठ कहते हैं लोग
कि कल जहाँ रूके थे,
आज वहाँ से आगे चलें।
दरअसल पड़ाव जैसी कोई चीज़ होती ही नहीं!
टुकड़ों-टुकड़ों में मंज़िल चुन लिया करते हैं हम
और हर टुकड़े को
सराय का नाम दे देते हैं.....
कल जब मिले थे
तब कोई और थे
आज साथ चल रहे हैं
तब कोई और हैं !!
कई बार
तुमको गौर से देखता हूँ
तो तुम में हज़ार अजनबी नज़र आते हैं।
उनमें से किसी एक अजनबी को चुनता हूँ
उसे अपना बनाने की कोशिश करता हूँ।
ज्यों ही कामयाब होता हूँ,
त्यों ही झुण्ड में से
एक और अजनबी चेहरा बाहर आ खड़ा होता है।
पहले मुझ पर हँसता है
फिर ललचाता है
और फिर चुनौती देते हुए
मुझसे भिड़ जाता है।
मैं भी पूरे जोश के साथ
उसे काबू करने के बाद
पसीने से लथपथ
उस चेहरे को थामता हूँ।
तभी उसमें मुझे अपना चेहरा दिखाई देने लगता है।
अचानक,
मेरे हाथ से वो चेहरा छूट कर
चूर-चूर हो जाता है।
मेरा मन....
मन में घुमड़ते विचार
विचार जैसे उन्मादियों का हुजूम !
तेज़ थाप, अजीब सी लय, आसमान गूँजाते अस्पष्ट नारे।
कभी-कभी लगता है
कि उस लय, उस ताल, उस थाप पर
मैं थिरक उठूँ...
इतना थिरकूँ, इतना थिरकूँ, इतना थिरकूँ
कि बहक जाऊँ।
फिर लगता है,
कि बहक गया तो तुमसे दूर हो जाऊँगा।
जानती हो
इसीलिये मैं नशे से भी बचता हूँ।
कि नशा किया तो बहक ना जाऊँ।
बहकने का सीधा मतलब
तुमसे दूर हो जाना है।
और तुमसे दूर होकर तो मैं कुछ भी नहीं!
ख़ुद को पा लूँ तो तुम से,
ख़ुद को खो दूँ तो तुम में !
मैं हूँ
मेरा वज़ूद नहीं है
तुम हो, तो मैं हूँ!
सुनो ना...
आज कुछ रंगीन धागों की गिर्रियाँ ले आओ
उनमें से थोड़े-थोड़े धागे निकाल कर
उन्हें आपस में उलझा दो
इतना उलझाओ कि वो सुलझ न सकें
फिर सुक़ून से बैठकर
बड़े करीने से
उन उलझे हुए धागों को तोड़ो
और उन टूटे हुए टुकड़ों को
यूँ ही छोड़ दो
...गाँठ बाँधे बग़ैर !!
उसके बाद मुझे पुकारो
ज़ोर-ज़ोर से, मेरा नाम लेकर।
और फिर वहाँ से चली जाओ
मेरे आने की परवाह किए बग़ैर !!!
प्यारिया....
मैं सुलझना चाहता हूँ
छोटे-छोटे रंगीन टुकड़ों में जीना चाहता हूँ
बिना किसी गाँठ के !
मेरी मदद करोगी ना !!
बोलो....
तुम्हारा
देव
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