Thursday 24 November 2016

मैं फिर आऊँगा !






एक पल के लिए ख़ुद से रु-ब-रु होता हूँ मैं,
दूजे पल लगता है चलिये ये जगह भी छोड़िये॥
एक कशमकश, बेचैन कसमसाहट
जहाँ हूँ वहाँ होकर भी नहीं होना
छोटी छोटी सी बातों पर
बड़ी देर तक सोचते रहना....
इन्हीं सबका परिणाम है देव !

देव का कोई आकार नहीं
वो उतना ही अमूर्त है
जितना कि मैं दृश्य हूँ।
कोई एक लम्हा छू गया था मुझको
और फिर लगा
कि नफ़रत भी तो प्यार का ही एक रूप है।
बस,
देव का जन्म हो गया।

पिछला ख़त लिखते वक़्त
रत्तीभर भी एहसास न था
कि एक सौ उनचासवाँ ख़त
मेरे लिए विश्राम बिन्दु होगा।
मगर...
यही ज़िंदगी है शायद !
ख़तों को एक सौ पचास तक पहुँचने से पहले रोक लिया।
अधूरेपन की कसक
कभी-कभी पूर्णता के संतोष से
अधिक भली लगती है।

अभी रात के ग्यारह बजकर चौबीस मिनिट हुये हैं
नील को जैसे ही पता चला
कि मैं इस ख़त के बाद
आप सब साथियों से विदा ले रहा हूँ।
तो उसने मेरा कंधा पकड़कर झकझोरते हुये
अपने हार्ट की कसम दे दी
ख़त का सिलसिला बंद न करने की कसम !
है ना विचित्र ....

कोई ठोस वजह नहीं है मेरे पास।
मगर बस ...
कभी-कभी मन कुछ कहता है ना !
उसी अंतस की आवाज़ पर
अभी विदा ले रहा हूँ।

कई ख़त सहेज रक्खे हैं अब भी
‘देव’ और उसकी ‘मैं’ के ख़त
ऐसे ख़त भी हैं
जिनको साल - डेढ़ साल पहले लिखा
उनसे संबंधित फोटोग्राफ्स भी ले लिये
लेकिन ...
अभी उनका वक़्त नहीं है शायद !

मज़े की बात तो ये है
कि अगला ख़त भी तैयार है
मगर जाने क्यों
मन उचट सा गया है।
ये तय है
कि मैं आऊँगा
चार-छह हफ़्ते, या कुछ महीने, या फिर  ... शायद और बाद !

बहुत प्यार मिला फ़ेसबुक पर
मैंने ख़ुद को नए रूप में अभिव्यक्त करना सीखा
कुछ खट्टे और ढेर सारे मीठे अनुभव हुये।
हम सबकी एक बिरादरी है
... फ़ेसबुक बिरादरी !
हम अबोले रहकर भी
एक दूसरे से कहीं न कहीं जुड़े होते हैं।
स्क्रॉल करते-करते
किसी की पोस्ट पर ठिठक जाते हैं
किसी को निहारते
किसी को इग्नोर कर देते हैं।  

उफ़्फ़
ऐसा लगा
जैसे कि मीर तक़ी मीर
अभी-अभी मेरे क़रीब से गुज़रे
“पढ़ते फिरेंगे गलियों में इन रेख्तों को लोग
मुद्दत रहेंगी याद ये बातें हमारियां । ”
और चाहता भी क्या है एक लेखक
कि उसको प्यार और सराहना मिले
पेट की आग तो
अपना ईंधन ढूँढ ही लेती है।

हाँ,
इमोशनल हूँ मैं !
अलग-थलग रहने की लाख कोशिशों के बाद भी
कभी-कभी इतना कंसर्निंग हो जाता हूँ
कि कुछ प्रेक्टिकल लोग
मुझे .....
मगर क्या करूँ ?
बदलाव अब संभव नहीं !

उन सब साथियों का शुक्रगुज़ार हूँ
जो निरंतर
मेरे हौसले को परवाज़ देते रहे।
उनका भी अभिनंदन करता हूँ
जो बगैर कोई प्रतिक्रिया दिये
चुपचाप मुझे पढ़ते रहे।

ज़िंदगी, कल फिर मिलने आयेगी
दिल फिर धड़केगा, फिर टूटेगा, फिर जुड़ेगा
हम सब यूं ही मिलते बिछड़ते रहेंगे।
लेकिन तब भी
एक आस हमेशा लालायित रखेगी
उस आस का नाम ही ज़िंदगी है।

सच-सच कहूँ
मुझे Bye या Good-bye शब्द डरा देते हैं।
ये पता होता है
कि जीवन में कुछ लोग
फिर कभी नहीं मिलेंगे।  
तब भी हमेशा
उनसे See you कहकर विदा लेता हूँ।
ये भी तय है
कि कभी ना कभी आपके समक्ष
मैं फिर आऊँगा
भावों से भीगे ख़त
कुछ पसंदीदा गीत और कविताएँ लेकर
तब तक के लिये
See you !

आपका

हृषीकेश वैद्य
  

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