Thursday, 10 November 2016

बया के घोंसले जैसी !








ओ मेरे देव,
नाराज़ नहीं मैं तुमसे
मेरी चुप्पी को
तुम नाराज़गी क्यों समझ लेते हो ?
चुप होकर
मैं ख़ुद में उतरती हूँ
फिर...
तुम्हारे और करीब आ जाती हूँ।

मानती हूँ
मैंने ही कहा था
कि कहीं से भी
मेरे लिए बया का घोंसला लेकर आओ।
पर यदि तुम न ला सके
तो कोई अपराध तो नहीं किया !
अच्छा ही हुआ
जो नहीं लाये।

देखो तो,
इस घोंसले की तलाश में
मैं कितनी दूर चली आई।
ज़िला सागर, तहसील देवरीकला
और वहाँ से भी सात किलोमीटर दूर मिला मुझे
सदियों पुराना नरसिंह मंदिर !
वही मंदिर...
जिसके प्रांगण में जब-तब दिख जाता है
नाग और नागिन का जोड़ा !
दूर एक कुआँ
जिसमें अनगिनत टूटी-फूटी मूर्तियाँ
और कुएं के मुहाने पर खड़ी
पहरा देती हुयी सी नाग-नागिन की साबुत प्रतिमा।  
उफ़्फ़....
द कपलिंग स्नेक्स !
लहराता-इठलाता, सर्पिल-श्यामल, प्रेमी जोड़ा !!
मंदिर प्रांगण के ठीक बाहर
बाजू में ही है एक और कुआँ,
और उस कुएं में लटकते हज़ारों घोंसले
मेरी प्यारी टेलर-बर्ड यानी बया के !

कभी तुम्हारा मन नहीं किया
इनसे चलकर पूछें
कि कैसे बनाती हैं ये
इतने सुंदर, इतने कलात्मक
.... इतने मज़बूत घोंसले !

मेरा बहुत मन करता है
कि इस छोटी सी चिड़िया को
अपनी हथेली पर बैठाकर
एक प्यारा सा चुंबन दूँ
और फिर पूछूँ
कि,
“ओ बया....
कहाँ से लाती हो तुम
ये जीजीविषा !
कहाँ से सीखा तुमने
ये अद्भुत कौशल !”

और देखो तो देव
कुओं के भीतर
लटकती हुई शाखों पर ही अक्सर
बनाती है बया  
अपना बसेरा !
अंडे से निकलकर
सीधे हवा में उड़ते हैं उनके बच्चे
धरातल नहीं मिलता उनको
पहले-पहल फुदकने को !

देव मेरे ....
सहेज लो ख़ुद को
बया बनकर।
क्यूँ खर्च होते रहते हो बात-बेबात पर।
वेदों ने भी तो कहा है
“अणो रणीयान, महतो महीयान” !
लघुतम से भी लघु
और महत्तम से भी बड़ा।
दोनों ही संसार
हमारे ही भीतर हैं।
मानव के देवत्व को पहचानो देव।

उस लड़की को अपने हाल पर छोड़ दो अभी
क्यूँ दिन-रात उसीकी चिंता में घुले रहते हो
वो तय कर रही है अभी
ख़ुद से ख़ुद तक की दूरी। 
जैसे ही यात्रा पूरी होगी
वो ख़ुद को पा लेगी
और जब ख़ुद को पाएगी
तो तुम तक भी लौट आएगी।
बहना चाहती है वो
तुम्हारे शब्द, तुम्हारी देखभाल
उसके प्रवाह में खलल डाल रहे हैं।
मैं ये नहीं पूछूँगी,
कि तुम इतने व्यथित क्यों हो।
हाँ,
ये ज़रूर कहूँगी
कि प्यार का मतलब
हर बार केअर करना नहीं होता।
कभी-कभी
किसी को उसके हाल पर छोड़ देना भी
प्यार ही होता है।

और हाँ,
यदि इतने पर भी
तुम्हारी बेचैनी चैन न पाये
तो एक धागा लो
और बुनो,
या कूची पकड़ो
और बनाओ,
या फिर कलम थाम लो अपनी
और कविता लिखो
.... बया के घोंसले जैसी !
समझे हो !!

तुम्हारी

मैं !

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