Thursday 3 November 2016

सर्वसुलभ होकर अनमोल बनते कुछ लोग





बाज़ारवाद के युग में
ठेले और ओटलों पर बेचनेवालों की पूछ-परख,
कम हो गयी है।
देसी और मौसमी फल भी
अब ज़्यादा नज़र नहीं आते।
अहा,
बचपन के दिनों की एक रसीली याद ताज़ा हो गयी।
सीताफल का नाम सुना है ?
पता नहीं तुम इसे किस नाम से जानती हो
शरीफा या शायद कस्टर्ड एप्पल !

कुछ दिन हुये
बहुत पुरानी गली से गुज़रा
तो एक ठेले वाला दिख गया।
नर्म गिरीदार सीताफल बेचते हुये।  
मैंने उसे रोक लिया
ढेर सारी बातें की,
फिर वो आग्रहपूर्वक सीताफल खिलाने लगा
तो मैंने सशंकित हो पूछा...
“तुम्हारा फल पेड़ पर ही पका है ना
ऐसा तो नहीं
कि कच्चा फल तोड़ कर
किसी कैमिकल में रख दिया हो?”
इस पर वो तौबा करते हुये
अपने फल को दबाकर
उसके सच्चे और अच्छे होने की गवाही देने लगा।

सखिया मेरी...
कुछ लोग भी ऐसे ही होते हैं
पेड़ पर पके हुये
सीताफल के जैसे !
वो जितने सर्वसुलभ होते जाते हैं
उतने ही नकारे जाते हैं
और फिर धीरे-धीरे
अनमोल हो जाते हैं।

एक लड़की...
जो ख़ुद को पागल, दीवानी कहती है।
और एक लड़का ...
जो ख़ुद को कोई नाम नहीं देता, मगर संजीदा है।
और मन ही मन दीवानों की इज़्ज़त करता है।
एक रात अचानक,
किसी भीड़ भरी जगह के शांत कोने में
दोनों मिल गए।
दीवानी को संजीदा भा गया।
इससे पहले
कि वो कुछ समझ पाता,
दीवानी ने उसे अपनी पूरी दास्ताँ सुना डाली।
लड़के ने थोड़ी देर ठहरना, समझना चाहा
लेकिन दीवानी कहीं नाराज़ ना हो जाए
ये सोच, मन मसोस कर रह गया।

फिर एक दिन ...
दीवानी अपनी सहेली को ले आई
उस लड़के से मिलाने !
लड़के की दोस्ती
अब सहेली से भी हो गयी।
दोनों हँसने मुस्कुराने लगे
बातें भी करने लगे।
दीवानी से ये सब सहा नहीं गया।
लानत मलानत देकर,
उसने लड़के को ख़ुद से दूर कर दिया। 

लड़का दुखी हुआ
लेकिन तब भी, वो हँसकर रह गया।
दिन, हफ्ते, महीने गुज़रे
फिर एक चाँदनी रात
लड़के ने देखा कि
दीवानी एक खाली दीवार पर सफेदी करके
काले अक्षरों से
इश्क़ लिख रही है।
वो उसके पास गया
और समझाने लगा।
कि,
“रात गुज़र जाने दो
सुबह फिर से आयेगी
सूरज जब चमके
तब रंग चुनना
इश्क लिखने के लिये !
तुम्हारे इश्क़ का रंग लाल नहीं काला है।
ये चाँदनी रात
तुम्हें भरमा रही है।
काला रंग तुमको
लाल लग रहा है।”
दीवानी को जैसे अंगारा छू गया...
पहले वो चीखी
फिर चिढ़कर बोली
“क्यों चले आये तुम
जानते नहीं
तुम्हारी हर बात से
अब मुझको नफ़रत है
रहम करो मुझ पर
आगे से फिर कभी
यहाँ नहीं आना !”

लड़का चला आया
मगर उसी रात, उसने सपना देखा
कि एक ऊबड़-खाबड़ संकरी पगडंडी पर
आँख मीचे दौड़ रही दीवानी
मुँह के बल गिर रही है।

अगली सुबह उठकर
जल्दी से वो लड़की के घर भागा।
वही लड़की,
जो ख़ुद को दीवानी कहती थी।
लड़के ने जाकर
खिड़की से देखा
कि दीवानी तो चैन की नींद सो रही है।
..... बड़ी बेफ़िक्री से !

खुश होकर लड़का
जब लौटने लगा
तो मैंने उसको टोका
“ख़ुद की इज़्ज़त कब करोगे?
मेरी बात सुनकर वो कुछ नहीं बोला
बस एक ओर इशारा कर मुस्कुरा दिया।
मैंने देखा
उसी सीताफल वाले को
ठेला लेकर जाते हुये।  
पेड़ पर पके हुये,
सच्चे और अच्छे सीताफल लिये।
मीठे मगर क्षणभंगुर ... सीताफल !
हाँ,
इस बाज़ारवाद में
विलुप्त होने लगे हैं
सीताफल जैसे लोग भी !!

सुनो
तुम बोर तो नहीं हुई ना ?

तुम्हारा

देव 

1 comment:

  1. ऐसा कमाल का लिखा है आपने कि पढ़ते समय एक बार भी ले बाधित नहीं हुआ और भाव तो सीधे मन तक पहुंचे !!

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