Thursday 17 November 2016

...मगर समय पुराना नहीं होता !









सपनों के शहर का पास
अचानक से इनवैलिड हो गया !
आपाधापी और हड़कंप मचा है।
हो भी क्यों ना ...
हर कोई यथार्थ से छिपना चाहता है
भागना चाहता है।
ख़ुद से उकताये लोग
सपनों में सहारा ढूंढा करते हैं।

तारीख़ और यादों से परे रहने वाली ....
पिछले कुछ दिनों से
तुम्हारी एक बात बहुत याद आ रही है।
वो बात,
जो तुमने तीन सौ पचहत्तर साल पुराने
बरगद के नीचे बैठकर कही थी।
जब मेरा सिर तुम्हारी गोद में था
मुँदी हुई पलकों पर
तुम्हारे आँचल की खुशबू फैली थी
और एक अजीब सा साँसों का संगीत
चहुं ओर व्याप्त था !
तुम्हारे शब्द...
प्रतिध्वनित हो कर
दो-दो बार मुझ तक आ रहे थे।
“ सोचो देव,
जो प्राकृतिक है वो कितना सुंदर है
अनुपम, अलौकिक, अप्रतिम।
और जो इंसान ने बनाया
वो तो कभी भी अप्रासंगिक हो सकता है
.... इनवैलिड !”
अपनी भारी हो चुकी पलकें खोलकर
मैंने उनींदे स्वर में पूछा था ...
“मतलब ?”
और तुम ठहाका लगाकर हँस पड़ी थीं।

विशाल आँगन वाला
एक पुराना घर !
पुराना घर ...
जो कि आँगन से छोटा है।
मिट्टी का आँगन...
जिसने अभी तक
सीमेंट, कॉन्क्रीट का स्वाद नहीं चखा है।
बरामदे में एक तखत।  
जिस पर बैठे अठहत्तर साला एक बुज़ुर्ग,
हाथों में माला
मुखड़े पर संतोष।
मुझे प्यार से बैठाते हैं
आशीष देते हैं;
शुद्ध घी की जलेबी
केसरिया दूध में भिगो कर
अपनेपन से खिलाते हैं।
मेरी हिरण सी नज़रें
उनके बड़े से ड्राईंगरूम में लटकती हुई
घड़ी की ओर जाती है।
“बहुत पुरानी है ये घड़ी
मुझे इससे लगाव है।”
इतना कहकर वो बुज़ुर्ग,
अपने अधेड़ बेटे की ओर देख
मुस्कुरा देते हैं।
बेटा भी मुस्कुराता है
उसकी आँखों में स्नेह–युक्त आदर है।
अचानक मैं तुम्हारी कमी महसूसने लगता हूँ
फिर उस घड़ी की टिक-टिक
तुम्हारी आवाज़ में तब्दील हो जाती है।
“देव,
समय बताने वाली मशीन
कितनी भी पुरानी हो
मगर समय पुराना नहीं होता
सदैव चलता रहता है
...बगैर ठहरे।”
और बस ...
मैं वहाँ होकर भी
वहाँ का नहीं रहता
उठ कर बाहर आ जाता हूँ
गहरी साँसें लेकर
पूरे आँगन का चक्कर लगाने लगता हूँ।

ओह्ह...
सुनो मेरी बहुत-कुछ,
मेरा सबकुछ बन जाओ ना !
... मेरा आधार,
मेरा पासपोर्ट,
मेरा लायसेंस,
मेरे आयडेंटिटी नंबर्स,
मेरे अकाउंट्स, मेरी पासबुक
... सबकुछ !
ऐसा नहीं कि मैं डरता हूँ,
मेरी रुचि नहीं कुछ चीजों में !

और वैसे भी
जो तुमसे प्यार करे
उसकी पॉलिटिक्स और इकनॉमिक स्टेटस में
भला कोई रुचि कैसे हो !
तुमने ही तो बनाया है मुझको
सबसे सुखी,
सबसे समृद्ध !
बोलो हाँ ....

तुम्हारा

देव  


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