Thursday 28 July 2016

तपिश कहाँ से लाऊँ...





कुछ ऐसे भी कमरे होते हैं
जो वार-त्योहार ही खुलते हैं।
मई की दुपहरी में
हर बार तपते हैं
और जुलाई में,
सीलन से भर जाते हैं।
गर्द जम जाये, तो फूँक देकर उड़ा दूँ
मगर नमी को सुखाने के लिये
तपिश कहाँ से लाऊँ
बोलो....!

एक लड़की थी
उजली हँसी और निर्दोष चेहरे वाली। 
जो उड़ना तो चाहती थी
पर नीड़ छूट जाने से डरती थी !
इसलिए वो अक्सर
मन के आकाश की पनाह में चली जाती।
जहाँ उसको ना कोई देखता
ना ही रोक पाता था।
चेहरे को ऊपर उठाये
आँखों को मीचे  
वो खोल दिया करती थी
अपनी कल्पनाओं के पंख
और उड़ने लगती थी
हवा से भी तेज़ !

ऐसे ही एक दिन
ख़यालों की उड़ान भरते हुये
लड़की ने आँखें खोलीं
तो उसे नज़र आयीं
एक और जोड़ी आँखें !
जो लगातार उसे ही निहार रही थीं
बड़ी हसरत और प्यार के साथ !

लड़की का दिल ज़ोर से धड़का
उसके होठों पर मुस्कान आ गई
उसे यूँ लगा
जैसे उसका ही प्रतिबिंब है।
बस इतना ही था उनका प्यार !

खुली हुई आँखों से भी
लड़का धरातल नहीं टटोल पाया !
और लड़की भी एक ही जगह स्थिर होकर
अपने पंख फड़फड़ाती रही।
और तब....
सपनों के पर्दे से बाहर झाँककर
यथार्थ की ओर मुँह किए हुये  
वो लड़की बोली
“सिर्फ़ हम दोनों ही नहीं
जाने कितने लोग जुड़े हैं हमारे साथ;
सही और गलत सोचना होगा
परस्पर आकर्षण की भी गुंजाइश नहीं है हमारे बीच !”
लड़का सहम गया....
लेकिन तब भी
हर उस रास्ते पर जाता रहा
जो लड़की के आशियाने के करीब से गुज़रता था।
फिर एक दिन
वो अपनी धुन में चला जा रहा था
कि लड़की ख़ुद उसके रास्ते में आ खड़ी हुई......
“क्यों चले आते हो
बार-बार मेरे आसपास !
चाहते क्या हो आख़िर...
तुम ही बता दो
क्या करूँ मैं?”
पहले हतप्रभ सा देखता रहा
फिर लौट गया वो लड़का
दोबारा कभी न आने के लिये।

गुड़िया सुनो....
एक बहुत पुरानी याद
जो बरसों से मैंने सहेज रखी थी
वो जुदा गयी है मुझसे
अनजाने में !!
याद.....
जिसको जी लिया करता था जब-तब छूकर !
वो नाज़ुक सी निशानी
मेरे दिल का क़रार
मेरी ही गलती से चूर-चूर हो गई है आज !

हथेलियों से चेहरा ढाँपे
उँगलियों के बीच झीरी बनाकर
बेचैनी से देख रहा हूँ इधर-उधर !
कि काश,
कोई समझ ले मेरा अपराध
और मेरे पास आकर
मुझे कोसे
ताने दे मुझको !
और ऐसी सज़ा सुना दे
कि मेरा अपराध-बोध हमेशा के लिये मिट जाये।
हाss…….

तुम्हारा
देव


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