Thursday 7 July 2016

कब तक मैं ही ...!




सोचा था
अभी कुछ दिनों तक
कोई ख़त नहीं लिखूंगा।
व्यस्तताओं के अजीब से छल्ले ने
घेर लिया है मुझको इन दिनों।

कभी-कभी लगता है
जैसे सारे दबाव,
बस मुझ पर ही आकर टिक गए हैं।
और कभी लगता है
कि मैंने ख़ुद होकर बोझ का पिटारा
रख लिया है अपने सिर पर !
लोग समझते होंगे
कि मैं अब पहले जैसा न रहा
और मुझे लगता है
कि कोई मुझको भी तो समझे
 कब तक मैं ही ...!

“मेरे दिल पे हाथ रक्खो, मेरी बेबसी को समझो
मैं इधर से बन रहा हूँ, मैं इधर से ढह रहा हूँ।”
ओ दुष्यंत कुमार त्यागी
जाने किस जनम का नाता है तुमसे भी
जो तुम्हारे अशआर चले आते हैं
मुझ तक बार-बार !

अजय एक लंबे संघर्ष के बाद,
बड़ा अधिकारी बन गया।
सरकारी नौकरी लगी है,
सब बहुत खुश हैं।
आज यारों की महफ़िल जमने वाली है
मगर मैं नहीं जा पाऊँगा !
सरू, शिव, वीरू, राजेश और खुद अजय ने मनुहार की
प्रेम तो महेश्वर से आ रहा है
अपने दोस्तों को लेकर
सिर्फ मुझसे मिलने
संगत करने और कविताओं का आनद लेने !
लेकिन आज मैं नहीं जा सकता
कुछ मजबूरियाँ हैं मेरी !

कभी-कभी अपराध बोध
इतना ज़्यादा जकड़ लेता है  
कि दम घुटने लगता है।
बचपन से ही ऐसा हूँ मैं !
सोचता हूँ,
तो सोचता रहता हूँ।
चुप होता हूँ,
तो चाहकर भी नहीं बोल पाता।
ख़्वाबों में उतरता हूँ,
तो यथार्थ को स्वीकार नहीं कर पाता।

लेकिन सब मेरे जैसे नहीं....
कितनी भाग्यशाली है वो लड़की
जिसे ख़ुद से बातें करनी आती हैं।
अक्सर बिना किसी संदर्भ
बिना किसी उकसावे के
अपनी बात लिख-लिख कर मुझको भेजा करती है।
साथ ही ये भी कह देती है
कि
“देव,
तुम चुप ही रहना
तुम बोलने लगोगे
तो मैं अपनी बात नहीं कह पाऊँगी।”

सखिया मेरी,
स्मित मुस्कान वाली .......
एक बात तो बताओ;
क्या कभी कोई  
इंसानी दिलों और मानव मन की थाह ले पायेगा ?
.....चाहकर भी !!!!

एक तुम हो
जो बस मुसकुराती रहती हो
एक मैं हूँ
जिसे छटपटाहट ने चुन लिया है
जीवनभर की प्रीत निभाने को !

ओह....
यकीन करोगी
अभी-अभी महसूस हुआ
कि जैसे अदृश्य से एक हाथ उभरा
और उसने मेरे माथे को सहलाया
..... हौले से !
फिर साक्षात ऐसा लगा
कि वो हाथ तुम्हारा था
ना रूप, ना रंग, ना ही कोई भेस
बिना आहट के कैसे चली आती हो बार-बार !

सुनो सखिया
कोई इल्म दे दो न मुझको
कि जब जहाँ रहूँ
तब-तब वहाँ
याद भर करने से तुम चली आओ।  
ये बेचैनी अब सही नहीं जाती।
गहरी नींद में जाने से पहले
पूरी तौर से जाग जाना चाहता हूँ
... मैं इस बार !
मेरी मदद करोगी ना !!!

तुम्हारा
देव


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