प्यार....
खौफ़ की खिड़की से झाँकती
एक अनकही आशा !
प्यार...
जिसे हम सब साथ लेकर आये
अपने-अपने जन्म से !
लाख कोशिशों के बाद भी
दुनिया जिसे बाँट नहीं पाई
जिसे अपने जाल में
उलझा कर भी नहीं उलझा पाई।
हाँ,
वो ही प्यार !
अच्छा या बुरा
छोटा या फिर बड़ा
प्यार से किसी को भी
प्यार से किसी को भी
कब हुआ इनकार !
किसी के लिए सानिध्य का सुख,
किसी के लिए एक भरपूर नज़र,
तो किसी के लिए
बस नाम सुनकर
बढ़ जाने वाली धड़कन !
जाने कितने एहसास
जाने कैसी-कैसी अनुभूतियाँ
जुड़ी हुयी हैं
फ़क़त इक प्यार से।
“जब मुझसे किसी भी तरह
कोई संपर्क न कर पाओ,
जब मेरे फ़ोन पर भी
लगातार घंटियाँ जाएँ, पर कोई न उठाए,
तो समझ लेना
मैं कमली हो गयी।
पर्वत प्रदेश के
उसी पुराने मंदिर के विशाल आँगन में
जोगन बनी
इधर से उधर भटकती
मिल जाऊँगी तुमको !
चले आना मुझ तक
गर अंजाम तक पहुँचाना चाहो
मेरी तुम्हारी दास्तान।”
एक वो थी ...
जो ऐसा कह कर चली गयी
अपने प्रियतम से।
और दूसरा ...
इस ट्रक का चालक है।
जो भटकता रहता है
पेट की आग बुझाने को,
या अपने दिल की आग
और-और सुलगाने को !
एक वाक्य उकेर दिया बस
अपने ट्रक के पीछे
“हँस मत पगली, प्यार हो जायेगा।”
मेरा मन हुआ
कि इसको रोकूँ
और बोलूँ
कि,
“ओ दीवाने,
पगला तो तू है !
जो सुनसान रातों में
और बीहड़ रस्तों पर
जाने किस के नाम के सहारे चला जा रहा है।
पता नहीं,
उसको तेरी ख़बर भी होगी या नहीं।”
लेकिन तभी...
मैं ठिठक गया
लगा, जैसे कोई पाप कर रहा
हूँ।
प्यार कोई चीज़ नहीं ...
वो तो बस एक भाव है।
किसी एक का
किसी ‘ख़ास’ के लिये।
जब मुझको
तुमसे पहली ही नज़र में प्यार हुआ था,
तब तुम कितनी रूखी हो गईं थीं
...मेरे प्रति !
“मानती हूँ देव
मैंने तुम्हारे भावों को हवा दी
लेकिन मैं तुम्हारे लिये ऐसा कुछ नहीं सोचती
जैसा कि तुम सोचते हो
.... मेरे बारे में !”
तुम्हारी ये बात सुनकर
मेरा चेहरा फीका पड़ गया था।
मगर तुम हँस पड़ी थी।
और देखो
उसके बाद तुमको भी तो प्यार हो गया
... मुझसे,
हाँ मुझसे !!
जानती हो
कभी-कभी मुझको यूँ लगता है
कि ये संजीदगी
ये ओढ़ा हुआ व्यवहार
ये बड़ी-बड़ी बातें
ये सब हम केवल इसलिए करते हैं
ताकि एक दिन
इन सब को रौंद कर
सिर्फ़ प्यार के हो जाएँ
सिर्फ़ प्यार में हो जाएँ।
और इसीलिए बस
ज़िंदा भी हैं हम !
पता है...
मेरा मन किया
कि मैं भी अपनी गाड़ी पर
इस ट्रक के पीछे लिखी इबारत गुदवा लूँ
और सुबह-सुबह
तुम्हारे लॉन के बाहर
अपनी गाड़ी लाकर खड़ी कर दूँ।
ताकि जब तुम...
एक हाथ में अख़बार
और दूसरे हाथ में
चाय का प्याला थामे बाहर आओ
तो हँस कर दोहरी हो जाओ
और तुम्हें एक बार फिर
नये सिरे से
मुझसे प्यार हो जाये !
फिर लगा...
कहीं ऐसा न हो
कि इसके बाद मुझे भी
इस ट्रक के ड्राईवर की तरह
अपनी गाड़ी में अकेले बैठकर
तुमसे दूर....
दिन-रात यहाँ से वहाँ भटकना पड़े।
बस मैंने मन को मसोस कर
अपना इरादा बदल लिया।
ठीक किया ना !
तुम्हारा
देव
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