Thursday, 2 June 2016

तुमसे प्यार करना, हर दिन ख़ुद की खोज है





कोई एक, दो या तीन बातें हों
तो मन में रखूँ अपने।
लाख जतन करूँ तो भी
तुम्हारे भावों से लबालब
मेरे मन का घड़ा
छलक ही जाता है।

तुम्हें तो याद भी नहीं होंगे
चौदह साल पुराने,
....दिल्ली के वे दिन;
और उन दिनों की बातें !!!
जब हम नॉर्थ कैम्पस के गलियारों में
यूं ही भटकते रहते थे बे-सबब !
याद है तब...
एक छोटा सा प्यारा सा
गोलू-मोलू उठा लायीं थीं तुम।
और जब मैंने,
उसे डॉगी के बच्चे की संज्ञा दी;
तो किस कदर नाराज़ हो गईं थीं।
“उसका नाम मस्टी है,
उसे उसके नाम से बुलाओ देव !”
और फिर लंबे समय तक
अलसुबह से देर रात तक
तुम्हारी दिनचर्या में शुमार हो गया था
उस puppy की देखभाल करना
कभी दूध की थैलियाँ
कभी बिस्किट के पैकेट्स
तो कभी अपने ज़रूरी कामों की अनदेखी।

तब समझ नहीं पाता था,
तुम्हारा ये व्यवहार मैं।
मगर हाँ,
तुमसे प्यार करता हूँ
ये अच्छी तरह पता था तब भी।
बरसों बीते उस बात को
लेकिन कल...
तुमने एक तस्वीर साझा करके
मुझे उन्हीं बीते हुये दिनों में लौटा दिया।

अपनी लोकेशन तुम वैसे भी नहीं देतीं।
इसलिए मैं बस,
अनुमान लगा लेता हूँ।
एक गाँव ...
पता नहीं कहाँ का !
राजस्थान या शायद हरियाणा...
और लंच-ब्रेक में
किसी किसान के घर
ठेठ देसी अंदाज़ में ली गयी
...तुम्हारी तस्वीर !

तस्वीर...
जिसमें कोई चेहरा नहीं
मगर अपनेआप में
एक मुकम्मल शख़्स के जैसी !
ख़ुश्क रोटियाँ
ताज़े कटे हुये प्याज़
भिंडी की सब्ज़ी
और प्याला भर दही !
आह....
याद है,
एक बार मिलने की बात को लेकर
तुम कुछ नाराज़ सी हो गईं थीं।
“ यदि मैं इतनी सेल्फ़-सेंटर्ड होती
तो सबके साथ सेवेन-स्टार हॉटेल में पार्टी कर रही होती।  
यहाँ, इस कमरे में
तुम्हारे साथ नहीं बैठी होती देव !”

ओह मुनिया...
तुमसे प्यार करना
हर दिन ख़ुद की खोज है
एक नई खोज !!!
हाँ,
स्वीकार करता हूँ
कि मेरा वज़ूद सिर्फ तुमसे है
जब तक तुम नहीं थीं
मेरी ख़ुद से मुलाक़ात नहीं हो पायी थी।
और आज...
ये ज़िंदगी इतनी भरी-भरी सी है,
जैसे इसमें कोई रिक्तता थी ही नहीं।

तुम्हारे ज़ानू पर रखी
इस थाली को देखने के बाद
मेरे कई अवसाद मिट गये।
अवसाद...
जो पिछले दिनों चले आए थे।
कुछ दुनियावी कारणों से,
तो कुछ गर्मी की मार से !

पता है ....
आज मेरा मन क्या करने का हो रहा है ?
कि आज मैं भी
किसी देसी परिवेश में
खटिया पर बैठकर
भिंडी की तीखी सब्ज़ी के साथ,
बगैर घी लगी रोटियाँ खाऊँ;
कच्चा प्याज़ मुट्ठी से फोड़कर।
और हाँ....
तुम्हारी तरह फीका दही नहीं खा सकता मैं !
दही में शक्कर ज़रूर मिलाऊँगा,
पूरे दो चम्मच !!!
और फिर,
शक्कर के घुलने का इंतज़ार किए बगैर,
उसे दांतों से मुंह में घोलकर चुसकियाँ लूँगा।
अरे हाँ याद आया,
तुम तो चीनी कहा करती हो ना शक्कर को !  
मेरी जापानी गुड़िया ...
मुस्कुरा दो ना एकबार
मेरे लिए।

तुम्हारा

देव 

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