Thursday, 7 January 2016

प्रार्थना रखा है, मैंने तुम्हारा नाम !







क्या ऐसा नहीं हो सकता
कि एक ही ज़िंदगी को
हम दो बार जी लें !
दो जनम लें
और एक बार मरें
...... हमेशा के लिये।

और जो ऐसा न कर सकें,
तो फिर हम उम्र को बाँट लें;
बराबर दो हिस्सों में।
आधी उम्र एक नाम के साथ जीएँ;
और आधी उम्र के लिये,
कोई दूसरा नाम रख लें।  

जानती हो
मैंने भी तुम्हारे दो नाम रखे हैं।
एक तो वो,
जिससे दुनिया तुम्हें बुलाती है
और दूसरा नाम....
... प्रार्थना !
हाँ,
प्रार्थना रखा है,
मैंने तुम्हारा नाम !
कितने ही मनकों
और मालाओं से गुज़रकर भी
एक ही रहती है
फिर-फिर फेरी जाती है जो
वो प्रार्थना। 

तुम कहती हो ना
“देव,
मुझे दिखावा पसंद नहीं।
दिल में इतना प्यार भर लो
कि बिलकुल खाली हो जाओ।”
तो लो,
खाली हो गया मैं
पूरा का पूरा।
देखो तो,
मुझमें समा गया
एक विचित्र सा अहसास।
खालीपन में भी
एक भरा-पूरा अहसास।

नौ बजकर दस मिनिट हुये हैं।
समय देखने के बहाने
बार-बार मोबाइल की स्क्रीन छूता हूँ।
बेचैन निगाहों के साथ, नए बहाने जुड़ गये।
तुम्हारी तस्वीर, तुम्हारी आवाज़
और तुम्हारे संदेश...
इनका ही इंतज़ार रहता है अब।  
कलाई घड़ी की वो बारीक़ सी टिक – टिक
दीवार घड़ी की वो चिड़िया वाली आवाज़
मानो बीते युग के साथ चले गये।

हाँ,
वो भी तो गुम हो गई
जो बहुत चहका करती थी।
ख़ुद को कड़वा कहती थी,
मगर लोग उसे मीठी बुलाते थे।
एक बार मिला था मैं उससे 
तब,
जब मेरा चेहरा चुरा लिया था किसीने;
और वो हँसकर बोली थी
“क्यों चिंता करते हो
असली तो तुम ही हो”
बस....
फिर उससे कभी नहीं मिला।
उसके जाने की खबर आयी
तो लगा
जैसे,
उसने भी लिये थे
एक ही जीवन में दो-दो जनम।

यक़ीन मानो
मृत्यु के प्रश्न अब विचलित नहीं करते !
मगर तब भी,
मैं बेकल हो उठता हूँ
उन लोगों को देखकर
जो समझकर भी नहीं समझ पाते
प्यार का सार !!!

कई बार....
मेरा मन करता है
कि ऐसे नादान लोगों को
मैं अपने पास बुलाऊँ
फिर अपने होठों से
तुम्हें बुदबुदा कर
उनके कानों में फूँक दूँ।
शायद उनमें से कुछ समझ पाएँ
कि प्यार क्या होता है।
कैसा होता है।

इस एक जीवन में
दो जनम दे दो ना मुझको...
प्रार्थना मेरी !

तुम्हारा
देव 

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