Thursday, 8 October 2015

..... अशरीरी आँसू, मेरी आत्मा के !!



बच्ची सुनो,
जाने कितने पूर्व-जन्मों की स्मृतियाँ
कभी-कभी एक बिन्दु पर आकर मिलती हैं।
और ठिठक कर जम जाती हैं।
जैसे काले बादलों से
बूंदों की लड़ी निकले
और धरती को चूमने से पहले ही
बरफ बन कर झूल जाये.....
....अधर में !!!

हर बार .....
हम वही गलती कर बैठते हैं।
भावना को उम्र से नापने की !!!
कितनी मुश्किल से खुल पाता है,
जीवन की किताब का वो अनमोल पन्ना
और हमारे ही हाथ के टसेरे से
बंद हो जाता है
फरफरा कर !!


फिर उम्र-भर
आँखों की नमी से
मध्यमा को भिगो-भिगो कर
उस पन्ने को खोजा करते हैं हम
उलट-पलट कर !

गुड़िया मेरी ...
कुछ आँसू बड़े अनमोल होते हैं,
उन्हें सँजोकर रखना चाहिए हमेशा।  
वे आँसू जिनके बहने से
अशरीरी पीड़ा होती है
...... आत्माओं को !!

वो....
जिनको हमने प्यार किया !
वो....
जिनने हमें प्यार किया, खुद से ज़्यादा !!!
वो लौटकर आते हैं
फिर-फिर
सिर्फ़ ये देखने
कि उनकी कमी
कहीं हमारे आँसुओं का सबब तो नहीं !
                                  
मेरे संबोधन मेरे नहीं
कोई कहलवाता है मुझसे
कि पुकारूँ तुम्हें
आर्त्र स्वर में
....... बच्ची !!!

प्रेम की अदृश्य डोर
उस वीडियो-कॉल की तरह है
जो दूर बैठे दो लोगों का
सजीव मिलाप करा देता है
और कॉल कट होते ही
सिर्फ़ बोझिल मट-मैली स्क्रीन रह जाती है।

सुनो न प्यारी....
मैं तुम्हें बच्ची इसलिए भी कहता हूँ
कि,
मेरे उच्चारण मात्र से
तुम फिर से अपने बचपन में चली जाओ
.... वर्तमान अनुभव और प्रेमिल भावों को सँजोये हुये !
तुम गुड्डे-गुड़िया से खेलो,
मैं तुम्हारे उलझे बालों को सुलझाऊँ;
बाज़ार ले जाकर तुम्हारी पसंद की चीज़ें दिला लाऊँ।
फिर तुम धीरे-धीरे युवा होने लगो
और मैं जर्जर होता जाऊँ।

जब मैं पूरी तौर से निःशक्त हो जाऊँ
तो तुम,
मेरे हाथ, मेरी आँखें, मेरे कान बन जाओ
धीरे-धीरे मैं तुममें घुलता जाऊँ
और फिर बस ....
आँसू बनकर तुम्हारी पलकों की
सबसे भीतरी कोर पर ठहर जाऊँ।
और उन आँसुओं को तुम सँजोकर रखो
हमेशा-हमेशा के लिये
अपने पास
..... अशरीरी आँसू
मेरी आत्मा के !!

तुम्हारा


देव   








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