Thursday, 22 October 2015

थोड़ी लाली ले लो ना सखी, इन सुर्ख़ पत्तों से !!



एक लड़की है,
खुशी है उसका नाम।  
अक्सर रूठी रहती है
.... मुझसे !!!

एक उम्र में
समझ नहीं पाता था
रूठना, मनाना .... यही सब बातें।

फिर,
स्फूर्ति थोड़ी शिथिल हुई,
और संवेदनाएँ बढ़ने लगीं।  
तब पता चला
कि ये खुशी क्यों रूठ जाया करती है,
गाहे-ब-गाहे मुझसे।

दरअसल,
एक भूल कर डाली;
अनजाने ही मैंने।
आगंतुकों के लिये दो दरवाज़े बना कर,
..... अपने घर में !!
गलत दरवाज़ा खोल दिया करता हूँ अक्सर।
खुशी आकर भी नहीं आ पाती,
फिर रूठ जाती है मुझसे !

सुनो...
चेहरा सफ़ेद पड़ गया है तुम्हारा
झक्क सफ़ेद !!!
विटामिन डी उड़ गया,
हीमोग्लोबिन सूखने लगा;
घर से बाहर भी कितना कम निकलती हो अब।
लोगों को लगता है,
कि तुम गोरी हो गयीं।
और मैं....
आशंकित हो उठता हूँ,
जाने कैसी-कैसी बीमारियों के डर से !  

कभी लगता है,
कि रिश्ते भी तो कुछ-कुछ ऐसे ही होते हैं।
धमनियों में बहते,
खून के जैसे !
जब-जब आयरन डिफ़िशंसि होती है,
हीमोग्लोबिन का लेवल नीचे जाता है
तब-तब रिश्ते,
सफ़ेद पड़ने लगते हैं।
दूर से समझ नहीं आते,
भीतर ही भीतर कुम्हला जाते हैं।
मैंने देखा है,
रिश्तों को मरते हुए;
खून की कमी से।  

पता है,
घर लौटते हुए आज,
मैं चाँद के ठेले पर रुक गया।  
अरे वही चाँद.....
सब्ज़ी वाला, साँवला सा लड़का।
तुम्हारी तरह भाव-ताव तो नहीं कर पाया,
मगर हाँ
लाल भाजी ले आया।
जानता हूँ,
तुम्हें पत्तेदार सब्ज़ियाँ पसंद नहीं
घास-फूस कहती हो ना
तुम इनको !
मगर एक बात कहूँ
तुम्हारा ये कमज़ोर सफ़ेद चेहरा,
अब मुझसे देखा नहीं जाता।  
थोड़ी लाली ले लो ना सखी
इन सुर्ख़ पत्तों से !!
ऐसे बेजान हो जाना,
कोई अच्छी बात तो नहीं।
हाँ,
एक बात और
कुछ हरी मिर्चें भी साथ ले आया हूँ।
सब्ज़ी चटपटी होगी,
तो चटखारे लेकर खा सकोगी। 
नहीं तो,
निगलने में कठिनाई होगी।
दवा तो आखिर दवा है,
फिर चाहे वो सब्ज़ी हो
या कुछ और !
थोड़ा अनमना ज़रूर हूँ
पर हताश कतई नहीं।
देखना,
सब ठीक होगा।

तुम्हारा

देव












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