Friday, 16 October 2015

दूर कहीं बज उठें चाँदी के टंकोरे

 



सुनो न ...
जोगी मेरे,
देखो
हर पल...हर घड़ी
सरकती जा रही है ये ज़िंदगी !!

और अब
उम्र की इस ढलान पर
पीछे मुड़कर
जब अतीत की झीरी से झाँकती हूँ
तो नज़र आने लगते हैं
कई सारे जुगनू !!  
तुम्हारी आँखों से उड़कर
मुझ तक आते, टिमटिमाते जुगनू !
जुगनू.....
जो मेरी अंधेरी राहों को रोशन करते हैं।



पीहू मेरे...
थक चुकी हूँ अब,
भटकते-भटकते
मन कहने लगा है  
कि लौट आऊँ तुम्हारे पास
.... हमेशा-हमेशा के लिए !

जानते हो
मैं तुमको जोगी क्यों बुलाती हूँ
क्योंकि अपने मोह को छिटक कर
हर बार तुम
जाने देते हो मुझे   
खुद से दूर,
...बहुत दूर
मेरे स्व में !
और फिर समाधिस्थ होकर
मैं मिल आती हूँ
कभी परबतों से
तो कभी समंदर की लहरों से !

मेरे साथिया ...
मैंने छोड़ दिया अब
रेत पर तुम्हारा नाम लिखना
अंकित जो होने लगे हो
मेरे अंतरतम अहसासों पर
तुम, धीरे-धीरे !!


अच्छा सुनो,  
पिछले खत में
अपने नये घर का जो पता लिखा है ना तुमने
उसके दरवाज़े पर होने वाली
हर आहट को,
अब ध्यान से सुनना।
हो सकता है  
कि किसी दिन
दस्तक हो ….
तुम लड़खड़ाते पैरों से दरवाज़ा खोलो
और सामने मैं खड़ी मिलूँ
.....अपनी अंजुरी फैलाए हुए
तुम्हारी आँखों से टपकते
पनियल मोती की बूंदों को सहेज कर  
अपने होंठों से लगाने को आतुर !

ज्यों ही मैं  
उन आंसुओं का पान करूँ
तुम्हारे सारे दर्द मेरे हो जाएँ
फिर,
अपनी गोद में
तुम्हारा पैर रखकर
मैं धीरे से सहलाऊँ..
बोसा लूँ हौले से
और लपेट दूँ उस पर  
बंदेज की चूनर अपनी प्रीत वाली।
जिसके छूते ही
तुम दौड़ने लगो !

पीहू मेरे,
तब  तुम्हारे कदम नाप लें
हमारे बीच की सारी अनकही दूरियाँ
और जब,
तुम थामो मेरा हाथ !
वक्त भी  थम जाए तब ...
दूर कहीं बज उठें
चाँदी के टंकोरे
पूरे बारह बार
 टन..टन...टन....


फिर मैं हौले से
तुम्हारे पास आकर कानो में कहूँ

जन्मदिन मुबारक .....
मेरे देव,
मेरे केशव,
माधव मेरे !!



तुम्हारी


 मैं !


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