Friday, 31 July 2015

मन करे तो चले आना







देव सुनो.......
कल रात तुम मेरे सपने में आये थे।
बड़ा अजीब सा स्वप्न
मैं अंदर कमरे में लेटी थी
और तुम,
बाहर खिड़की से झाँक रहे थे।
जागी तब से कशमकश में हूँ
तुम्हें दो बार फोन भी किया
मगर तुम्हारा मोबाइल बंद था।

मुझे जानना है
कि तुम क्या पूछना चाहते हो
क्यूँ ज़रूरत पड़ी ?
खिड़की से भीतर झाँकने की !!
जबकि तुम्हारे लिए मेरे द्वार सदैव खुले हैं
घर के भी ...
और दिल के भी !

ऐसा क्या है
जिसे दिल में दबाये फिरते हो
फिर चुपचाप सपनों में आते हो
और चले जाते हो
पूछते क्यों नहीं
पूछ लो
जिस बात ने तुम्हें बेचैन किया है।

तुम तो सदा से आत्मविश्वासी रहे
कभी कोई असुरक्षा नहीं देखी मैंने
तुम में, मुझे लेकर।
फिर सपने में तांक-झाँक करने क्यों चले आये ?

मानती हूँ
मैं मनमौजी और अल्हड़ हूँ
पर नदी को तो सागर में ही मिलना है
और मेरा सागर तुम हो देव।

जानते हो न
घुँघराले बालों वाले,
उस साँवले कलाकार को।  
जिसकी बांसुरी की तान पर,
अनायास ही मेरे पैर थिरक उठते हैं !
वो कलाकार अब मुझे माया कह के पुकारता है।
शायद उसे शिकायत है
कि मैं उसकी कला पर ही क्यों फिदा हूँ
उस पर क्यों नहीं ?
पसंद और प्रेम में तो अंतर होता है न देव ....
तुम ही कहो ।

लेकिन तुम उसके जैसे क्यों बन रहे हो
चाहे ख्वाब ही क्यों न हो
मगर मेरा देव सब से जुदा हो
बस !
जो अपूर्ण हैं
वो सब असुरक्षा में जी रहे हैं
लेकिन तुम तो मेरी पूर्णता हो !
देव मेरे,
जायज़-नाजायज़ से परे हैं हम-तुम
जानती हूँ
कि मेरी देह नहीं
मेरा मन नहीं
मेरी रूह है तुम्हारी ज़रूरत
ये सारे ख़त
तुम मेरी रूह के नाम लिखते हो।

तुम्हें पता है
मेरे शहर में भी आज बरसात हो रही है
झमाझम बरसात।
और मैं ....
अपने कमरे की बत्तियाँ बुझा कर
खिड़की के पास आकर खड़ी हो गयी हूँ
तुम्हें तस्वीर भेज रही हूँ
कमरे की सीमा से,
खिड़की के विस्तार तक की।
मन करे तो चले आना
भाव के तुरंग पर सवार हो कर !
बूँदों की टपाटप में भी
तुम्हारे नाम की अनुगूँज है
ये कोई मायालोक नहीं
मेरा सच है !
समझ रहे हो ना....

तुम्हारी

मैं !





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