प्रिय देव,
कई बातें हैं,
जिन पर मैं सिर्फ मुस्कुरा देती हूँ;
कुछ कहती नहीं।
लेकिन,
कभी किसी एक बात पर मैं अटक कर रह जाती हूँ।
या वो बात मुझे उलझा लेती है अपने आप में .....
मछली का काँटा बन कर !
छटपटाने लगती हूँ
तब तक,
जब तक कि वो बात मेरे मन की गुफाओं से अपना रास्ता बना कर फट ना पड़े
...
लावे की तरह !!!
याद है,
एक बार तुमने अपने बचपन की कुछ यादें साझा की थीं।
कमाल की आइरनि है देव
सितारा होटल में ‘लाईम जूस कोर्डियल’ पिलाते हुये
तुम मुझे गाँव की ओर ले चले थे।
और मैं अनायास ही चुसकियाँ लेने लगी थी....
उस ‘खट-मिट्ठे नीबू पानी’ की !
कितना कुछ जीवंत हो उठा था....
वो काँच की बरनियाँ, उनमें रखी चॉकलेट्स !
ओहह सॉरी ...
क्या बोले थे तुम ?
“टॉफी, गोली और बिस्कुट।”
हा हा हा !!!
जानते हो,
मुझे बंधना अच्छा नहीं लगता।
मैं उड़ना चाहती हूँ !
कभी-कभी लगता है,
कि चलते-चलते भी उड़ रही हूँ।
तुमसे मिलकर आने के बाद मैं तुम्हारे बारे में नहीं सोचती।
बस तुम्हारी कोई बात मुझे उलझा लेती है
..... मछली का काँटा बनकर ।
और मैं दिन भर उसी बात को अपने ज़ेहन में लिए घूमती रहती हूँ ।
यहाँ से वहाँ....
कभी-कभी ये भरम होने लगता है
कि मैं तुम्हारी बात सोच रही हूँ
या तुम्हें सोच रही हूँ।
सच कहूँ,
मुझे तुम्हारी बातें अच्छी लगती हैं
पर मैं तुम्हें नहीं सोचना चाहती।
ज़रूरी तो नहीं,
कि जिसे चाहो उसी के बारे में सोचते रहो.....
बार – बार लगातार !!!
कल सिग्नल पर लाइट जैसे ही ग्रीन हुई
मुझे एक लड़का दिखा,
जो तुम्हारी यादों को वर्तमान की थैली में सहेज कर निकल रहा था।
मैंने आनन-फानन गाड़ी साइड में रोकी
और उसे आवाज़ देकर वो यादें खरीद लीं।
कौड़ी के मोल....
कुछ लोग मुझे देखकर मुस्कुरा रहे थे।
नहीं जानती कि मुझ पर.....
या मुझमें छिपे तुम पर !
लेकिन ये सच है
कि उस लड़के ने मेरे मन की गुफा में एक रास्ता बना दिया।
मगर उसमें से जो बह कर निकला .....
वो लावा नहीं प्रेम था।
मुझे अन्यथा मत लेना..
तुम्हारी
मैं !
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