Thursday 13 November 2014

....अक्सर !!!




एक लमहा होता है
जो पसर जाता है, किन्हीं दो के बीच !
.... दीवार बनकर।
और इंसान अजनबी बन जाते हैं, हमेशा के लिए ।
बस एक लमहा
जो या तो खाली कर देता है सदियों के लिए
या फिर बुझा दिया करता है जन्मों की प्यास !
लमहे जो जुड़े होते हैं इंसानों से।
लमहे जो भरमाते हैं हमें,
दो रिश्तों के बीच खाई खोद कर ।

उस दिन तुम कितनी अपनी सी लगी थीं,
एकदम मासूम,
..... बच्ची जैसी !!!
“देव तो पाठकों का है
मेरा क्या ?”      
यह कह कर जब तुमने अपनी आँखें ऊपर की तो मैं तुम्हें देखता ही रह गया था ।
तुम्हारे वो छोटे-छोटे बाल,
जो मुझे अक्सर लेडी डायना की याद दिलाते हैं ।
हल्के से भींचे हुये होंठ,
जिनका सामान्य रंग भी लिपस्टिक के किसी यूनीक शेड सा लगता है ।
वो नज़ाकत से निखरी हुयी तुम्हारी उँगलियाँ ....
और उनके बीच इठलाता i-phone !

कुछ देर रुक कर तुम फिर बोली थीं ...
“मैं एक प्रेक्टिकल लड़की हूँ
मुझे तुम्हारी तरह किसी की तलाश नहीं है देव !
समझने की कोशिश कर रही हूँ
इन फीलिंग्स को, जो मेरे लिए नयी हैं अभी
बिलकुल नयी !!!”
                
और जब मेरी उमंग की आँच पर तुम्हारी तटस्थता की परत चढ़ने लगी,
तभी तुमने फूँक देकर उस बुझती आँच को सुलगा दिया।
“अगर ये प्यार है,
तो मैं इसे जीना चाहती हूँ ।
उड़ना चाहती हूँ,
बहना चाहती हूँ ,
तुम में घुल कर खुद को भूल जाना चाहती हूँ !”

और मैं फिर से दौड़ने लगा था ...
रूमानियत के घोड़े पर सरपट सवार होकर !
पता नहीं, मैं कुछ खोज रहा हूँ या नहीं।
मगर हाँ,
मैं वैसा समझदार नहीं,
जैसे कि लोग अक्सर हुआ करते हैं
इसीलिए मैं भी अक्सर...
खैर छोड़ो ।

फिर तुम अपने काम में मसरूफ़ हो गईं
और मैं तुम्हारे ख़यालों में !!!
ख़याल, जो सोने नहीं देते
ख़याल, जो बंधे हैं हर गुज़रते लमहे के साथ ।

वो भी तो एक लमहा ही था
जब मैं तुमसे बात करने के लिए तड़प रहा था, मचल रहा था।
तुमने कोई प्रतिरोध नहीं किया
बस एक लमहा ओढ़ लिया
...अजनबीपन का !
मुश्किल से आधे मिनिट ही बात हुयी थी
और तुम बोलीं ....
“सुनो,
Whatsapp पर आ सकते हो क्या ?
अभी बात करना पॉसिबल नहीं।“

जल्दी से मैं Whatsapp पर आया।
इतनी जल्दी कि मन ही मन गिरते-गिरते बचा,
पर तुम कहीं भी नज़र नहीं आयीं।

मैंने हड़बड़ा कर तुम्हें Whatsapp किया
-हैलो

-जी
(उधर से तुम्हारा जवाब आया )

-बिज़ि हो क्या?
(मैंने पूछा)

-हम्म
बिट बिज़ि

-ठीक है फिर कभी
(मैं बोला)

-श्योर
प्लीज़ डोंट-माइंड

-ऐसे माइंड करने लगे तो हो गया काम।
(मैंने एक स्माइली के साथ लिख भेजा)

तब तुमने एक के बदले दो स्माइली भेज दी।
उसके बाद मैं बार-बार Whatsapp पर आकर तुम्हें निहारता रहा .....
तुम अक्सर Online ही दिखीं ।

वो लमहा ही तो होता है
जो हमें अजनबी बना दिया करता है
....अक्सर !!!

तुम्हारा


देव 

No comments:

Post a Comment