Thursday, 22 September 2016

कहीं उसको मेरी आदत न पड़ जाये







किरदार घूमा करते हैं
मेरे आस-पास...!
कोई भेजता है उनको
संदेश लेकर !
एक लड़की
बिलकुल मासूम, निर्दोष चेहरे वाली !
अक्सर मुझसे बात करते हुए रो पड़ती है।
मैं पानी पी लेने को कहता हूँ
मगर वो नहीं पीती।
निगाहें परे करते हुये कहती है
“नहीं, मैं ठीक हूँ !”

फिर,
हौले से होठों को हिला
मद्धम स्वर में पूछती है
“आप मेरे घर आएंगे ना ?”

चाहते हुये भी मैं
कुछ नहीं कह पाता।
बस....
मुँह को भीचकर
कुछ निरर्थक शब्द निकाल पाता हूँ। 
बहुत कुछ कहना चाहता हूँ
अपनी दास्तान सुनाना चाहता हूँ उसे
मगर .... !!!

कई बातें हैं
उससे साझा करने की !
लेकिन नहीं कर पाता
मसलन....
पीले कपड़े उस पर बहुत फबते हैं,
उनकी आभा से
एक अजीब सी कांति उभर आती है उसके मुखड़े पर !
ठीक वैसी ही,
जैसी कि
मेरी तर्जनी की अंगूठी में जड़े बासन्ती पुखराज की !

कुछ बच्चे कभी बड़े नहीं होते
और दुनिया...
उनको वयस्क समझने लगती है।

अजीब अहसासों से घिर जाता हूँ कभी-कभी
लगता है जैसे.....
मेरे समानान्तर अनेकों दुनिया मौजूद हैं।
जो दिखाई देते हैं
वो मेरे नहीं।
और जो मेरे हैं
वो अदृश्य हैं !

कई बार मन करता है
कि हाथ बढ़ाकर
उसके हाथों को थाम लूँ
और उसकी उंगली के पोरों से
मेरी उंगली के पोर जोड़कर
उससे कह दूँ
कि अपने सारे डर, अपने दर्द
मुझे दे दे।
मैं उन्हें ले जाकर
नर्मदा में विसर्जित कर दूँगा।
मगर ठिठक जाता हूँ
लगता है
कि कहीं उसको
मेरी आदत न पड़ जाये।

सखिया मेरी ...
ऐसा क्यों होता है
कि बदलते वक़्त के साथ
कुछ लोग पूरे बदल जाते हैं।
और कुछ....
चाहकर भी वैसा नहीं कर पाते।
रौनक, चकाचौंध, शोर और रंगीनियाँ
उनको फिर-फिर उदास कर जाते हैं।
क्यों ऐसा होता है
कि कोई मासूम
दुनियावी दर्द झेलकर भी
वैसा ही निश्छल और मासूम बना रहता है।
बन्दिशें, नफ़रतें और साज़िशें
मिलकर भी उसको नहीं बदल पातीं।  

मेरा एक काम करोगी....
उस लड़की से जाकर
बस इतना कहना
कि मैं उतना अच्छा नहीं
जितना कि वो मुझे समझती है।
और ये दुनिया
हमेशा अपनी रफ़्तार से चला करती है।
कहोगी ना ?

तुम्हारा
देव



1 comment:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "भूली-बिसरी सी गलियाँ - 10 “ , मे आप के ब्लॉग को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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